essayonhindi
100- 200 Words Hindi Essays 2024, Notes, Articles, Debates, Paragraphs Speech Short Nibandh
- महान व्यक्तित्व
विशिष्ट पोस्ट
भारत विजन 2020 निबंध | india vision 2020 essay in hindi, जीवन में गुरु का महत्व पर निबंध essay on importance of guru in hindi, जीवन में गुरु का महत्व पर निबंध essay on importance of guru in hindi.
- गुरु भक्ति पर निबंध
- मेरा प्रिय अध्यापक निबंध
- शिक्षा का अधिकार पर निबंध
गुरु का महत्व पर निबंध
गुरु का महत्व पर निबंध जीवन में गुरु का महत्व पर निबंध
गुरु का मनुष्य के जीवन में विशेष महत्व होता है। माता -पिता हमारे प्रथम शिक्षक होते है। गुरु का दर्जा माता -पिता से भी ऊंचा होता है। उदहारण स्वरुप अगर हम अँधेरे कमरे में बंद हो जाए, और अन्धकार में ही हम किसी चीज़ को ढूंढ रहे है लेकिन हम विवश है और उस चीज़ को ढूंढ नहीं पा रहे है, ऐसे में गुरु के दिशा निर्देश के बैगर हम उस चीज़ को ढूंढने में असमर्थ है। गुरु जी जैसे ही हमें बताते है और वह चीज़ हमे तुरंत प्राप्त हो जाती है। गुरु के बैगर हमारी ज़िन्दगी दुःख से भर जायेगी और हम जीवन में विभिन्न चीज़ों को सीखने में नाकामयाब होंगे। गुरु हमें अपने जिन्दगी में सही दिशा दिखाते है। वह हमारे जीवन में पथ प्रदर्शक के रूप में कार्य करते है।
भारत में प्राचीन काल से ही गुरु का विशेष महत्व है। मनुष्य के लिए गुरु सबसे ऊपर होता है। गुरु हमे सही मार्ग चुनने में सहायता करते है। गुरु शब्द का निर्माण दो शब्दों को मिलाकर होता है। गुरु में गु का अर्थ है अन्धकार और रु का अर्थ है रोशनी। गुरु हमे अंधकारमय जीवन से प्रकाश की ओर ले जाते है। गुरु एक दिये की तरह होते है, जो शिष्यों के जीवन को रोशन कर देते है। खासकर विद्यार्थी जीवन में गुरु की अहम भूमिका होती है। गुरु विद्यार्थी को हर प्रकार के विषयो से संबंधी जानकारी देते है ओर जीवन के अलग अलग पड़ाव में उन्हें मुश्किलों से लड़ना सीखाते है। विद्यार्थियों को अनुशासित होना, विनम्र, बड़ो का सम्मान करना सीखाते है।
विद्यालय में विद्यार्थी अपने जिन्दगी में सही और गलत का फर्क नहीं कर पाते है। गुरु जी विद्यार्थी को यह अंतर करना सीखाते है, ताकि वे जिन्दगी के कठिनाईयों में सही राह को चुन सके। विद्यार्थी अपने जीवन में हर कठिन परिस्थिति का सामना डट कर और निडर होकर कर सके। गुरु की असीमित शिक्षा और आशीर्वाद से विद्यार्थी जिंदगी के विषम परिस्थितियों को पार कर लेते है।
गुरु की भूमिका सबके जीवन में होती है। हर व्यक्ति गुरु के प्रति आस्था, विश्वास और सम्मान रखता है और छोटे बड़े फैसले लेने से पूर्व अपने गुरु की राय जानना चाहता है। हर व्यक्ति को अलग अलग चीज़ों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है। उदाहरण स्वरुप अगर आप गाड़ी चलना सीखना चाहते है, उसके लिए आपको ड्राइविंग गुरु की आवश्यकता होती है, अगर आप संगीत सीखना चाहते है, उसको सीखने के लिए संगीत गुरु की ज़रूरत होती है। अगर हम जीवन में इस प्रकार के कलाओ को सम्पूर्ण रूप से सीखना चाहते है, तो आपको गुरु के पास जाना होता है।
गुरु का प्रमुख उद्देश्य है, विद्यार्थी को सफल बनाना और उन्हें भरपूर ज्ञान प्राप्त करवाना। प्राचीन काल में गुरु शिष्यों को आश्रम में साहित्य, कला और जीवन के फलसफे इत्यादि पर ज्ञान प्रदान करते थे, लेकिन अब वर्त्तमान में गुरु अपने शिष्यों को कॉलेज, स्कूल इत्यादि शिक्षा संस्थानों में शिक्षा प्रदान करते है। शिष्य हमेशा गुरु के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते थे। गुरु हमेशा शिष्य का भला चाहते है और वे अपने शिष्यों को सफलता की चोटी पर विराजमान देखना चाहते है।
गुरु को सम्मान देने लिए गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। इस दिन घरो और मंदिरो में विशेष पूजा पाठ होती है। कई स्थानों में जहाँ गुरु अपने शिष्यों की शिक्षा में सम्पूर्ण सहयोग देते है, उनका गुरु पूर्णिमा के दिन आदर सत्कार किया जाता है। इस दिन गुरु दक्षिणा के रूप में दान किया जाता है और इससे शिष्यों को पुण्य प्राप्ति होती है।
सच्चा गुरु भक्त अपने सभी लक्ष्यों को पूर्ण करने में सफल होता है। एक बच्चे की प्रथम गुरु उनकी माँ होती है जो उन्हें बोलना, चलना, लिखना पढ़ना सिखाती है। हमेशा से हिन्दू धर्म में गुरु का विशेष महत्व रहा है। संत कबीर ने भी गुरु भक्ति के कई पदों की रचना की थी। एक गुरु हमेशा अपने शिष्य को अपने आप से सफल और श्रेष्ठ देखना चाहता है। यह हमारे गुरु का बड़प्पन है। गुरु सिर्फ शिक्षक के रूप में ही नहीं बल्कि विभिन्न रूपों में हो सकते है जैसे माता, पिता, भाई, बहन, दोस्त। हम विभिन्न लोगो से ज़िन्दगी में सीख सकते है और ज्ञान प्राप्त कर सकते है।
हर किसी के जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है। मनुष्य को गुरु का महत्व समझना चाहिए और जीवन पर्यन्त उनका सम्मान करना चाहिए। उनके आशीर्वाद के बैगर मनुष्य अधूरे है। गुरु को प्रणाम किये बिना हम कोई शुभ कार्य शुरू नहीं करते है। उनके द्वारा दी गयी शिक्षा मनुष्य को जीवन भर काम आती है। उनके आशीर्वाद से कीमती चीज़, उनके शिष्य के लिए और कुछ हो ही नहीं सकती है। गुरु के प्रति हमेशा शिष्य के मन में श्रद्धा होनी चाहिए, तभी शिष्य अपने कार्य के बारीकियों को भली भाँती सीख सकते है।
#सम्बंधित:- Hindi Essay, Hindi Paragraph, हिंदी निबंध।
- आदर्श विद्यार्थी पर निबंध
- मेरे प्रिय अध्यापक पर निबंध
- अनुशासन पर निबंध
- आज की युवा पीढ़ी पर निबंध
- पुरानी पीढ़ी और नयी पीढ़ी में अंतर
- मेरा देश भारत पर निबंध
- आधुनिक भारत पर निबंध
- महान व्यक्तियों पर निबंध
- पर्यावरण पर निबंध
- प्राकृतिक आपदाओं पर निबंध
- सामाजिक मुद्दे पर निबंध
- स्वास्थ्य पर निबंध
- महिलाओं पर निबंध
Related Posts
दहेज प्रथा पर निबंध
शिक्षा में चुनौतियों पर निबंध
हर घर तिरंगा पर निबंध -Har Ghar Tiranga par nibandh
आलस्य मनुष्य का शत्रु निबंध, अनुछेद, लेख
मेरा देश भारत पर निबंध | Mera Desh par nibandh
1 thought on “गुरु का महत्व पर निबंध”
Bhavesh manhar
Leave a Comment Cancel reply
- श्री सम्प्रदाय
- श्री रामानुजाचार्य
- श्री गुरु महाराज
- श्री गुरुजी
- श्री गुरु माता जी
- श्री गुरु महाराज की समाधि
- श्री यज्ञशाला
- श्री गुरु दरबार
- प्राचीन धूना
- श्री नारायण गौशाला
- श्री गोपुरम
- श्री गरुड़ स्तंभ
- श्री देव दरबार
- जनहित सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट
- वैश्विक केंद्र
- आश्रम / मंदिर समय
- वार्षिक समारोह
- मासिक कैलेंडर / पंचांग
- अन्य महत्वपूर्ण लिंक
- आगामी नाम दान कार्यक्रम
- नाम दान की अद्यतन सूची
- आरती और चालीसा
- चमत्कारिक अनुभव
- अनुभव साझा करें
- प्रतिक्रियाएं व सुझाव
- पंजीकरण कराएँ !
- संपर्क करें
- आश्रम कैसे पहुंचें
- आश्रम के नियम
- ऑफ़लाइन दान
- Terms & Conditions
- Online Donation
- मुख्य पृष्ठ
गुरु का महत्व
गुरु के महत्व पर संत शिरोमणि तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है –
गुर बिनु भवनिधि तरइ न कोई। जों बिरंचि संकर सम होई।।
भले ही कोई ब्रह्मा, शंकर के समान क्यों न हो, वह गुरु के बिना भव सागर पार नहीं कर सकता। धरती के आरंभ से ही गुरु की अनिवार्यता पर प्रकाश डाला गया है। वेदों, उपनिषदों, पुराणों, रामायण, गीता, गुरुग्रन्थ साहिब आदि सभी धर्मग्रन्थों एवं सभी महान संतों द्वारा गुरु की महिमा का गुणगान किया गया है। गुरु और भगवान में कोई अन्तर नहीं है। संत शिरोमणि तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते हैं –
बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि। महामोह तम पुंज जासु बचन रबिकर निकर।।
अर्थात् गुरू मनुष्य रूप में नारायण ही हैं। मैं उनके चरण कमलों की वन्दना करता हूँ। जैसे सूर्य के निकलने पर अन्धेरा नष्ट हो जाता है, वैसे ही उनके वचनों से मोहरूपी अन्धकार का नाश हो जाता है।
किसी भी प्रकार की विद्या हो अथवा ज्ञान हो, उसे किसी दक्ष गुरु से ही सीखना चाहिए। जप, तप, यज्ञ, दान आदि में भी गुरु का दिशा निर्देशन जरूरी है कि इनकी विधि क्या है? अविधिपूर्वक किए गए सभी शुभ कर्म भी व्यर्थ ही सिद्ध होते हैं जिनका कोई उचित फल नहीं मिलता। स्वयं की अहंकार की दृष्टि से किए गए सभी उत्तम माने जाने वाले कर्म भी मनुष्य के पतन का कारण बन जाते हैं। भौतिकवाद में भी गुरू की आवश्यकता होती है।
सबसे बड़ा तीर्थ तो गुरुदेव ही हैं जिनकी कृपा से फल अनायास ही प्राप्त हो जाते हैं। गुरुदेव का निवास स्थान शिष्य के लिए तीर्थ स्थल है। उनका चरणामृत ही गंगा जल है। वह मोक्ष प्रदान करने वाला है। गुरु से इन सबका फल अनायास ही मिल जाता है। ऐसी गुरु की महिमा है।
तीरथ गए तो एक फल, संत मिले फल चार। सद्गुरु मिले तो अनन्त फल, कहे कबीर विचार।।
मनुष्य का अज्ञान यही है कि उसने भौतिक जगत को ही परम सत्य मान लिया है और उसके मूल कारण चेतन को भुला दिया है जबकि सृष्टि की समस्त क्रियाओं का मूल चेतन शक्ति ही है। चेतन मूल तत्व को न मान कर जड़ शक्ति को ही सब कुछ मान लेनाअज्ञानता है। इस अज्ञान का नाश कर परमात्मा का ज्ञान कराने वाले गुरू ही होते हैं।
किसी गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रथम आवश्यकता समर्पण की होती है। समर्पण भाव से ही गुरु का प्रसाद शिष्य को मिलता है। शिष्य को अपना सर्वस्व श्री गुरु देव के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए। इसी संदर्भ में यह उल्लेख किया गया है कि यह तन विष की बेलरी, और गुरू अमृत की खान, शीश दियां जो गुरू मिले तो भी सस्ता जान।
गुरु ज्ञान गुरु से भी अधिक महत्वपूर्ण है। प्राय: शिष्य गुरु को मानते हैं पर उनके संदेशों को नहीं मानते। इसी कारण उनके जीवन में और समाज में अशांति बनी रहती है।
गुरु के वचनों पर शंका करना शिष्यत्व पर कलंक है। जिस दिन शिष्य ने गुरु को मानना शुरू किया उसी दिन से उसका उत्थान शुरू शुरू हो जाता है और जिस दिन से शिष्य ने गुरु के प्रति शंका करनी शुरू की, उसी दिन से शिष्य का पतन शुरू हो जाता है।
सद्गुरु एक ऐसी शक्ति है जो शिष्य की सभी प्रकार के ताप-शाप से रक्षा करती है। शरणा गत शिष्य के दैहिक, दैविक, भौतिक कष्टों को दूर करने एवं उसे बैकुंठ धाम में पहुंचाने का दायित्व गुरु का होता है।
आनन्द अनुभूति का विषय है। बाहर की वस्तुएँ सुख दे सकती हैं किन्तु इससे मानसिक शांति नहीं मिल सकती। शांति के लिए गुरु चरणों में आत्म समर्पण परम आवश्यक है। सदैव गुरुदेव का ध्यान करने से जीव नारायण स्वरूप हो जाता है। वह कहीं भी रहता हो, फिर भी मुक्त ही है। ब्रह्म निराकार है। इसलिए उसका ध्यान करना कठिन है। ऐसी स्थिति में सदैव गुरुदेव का ही ध्यान करते रहना चाहिए। गुरुदेव नारायण स्वरूप हैं। इसलिए गुरु का नित्य ध्यान करते रहने से जीव नारायणमय हो जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गुरु रूप में शिष्य अर्जुन को यही संदेश दिया था –
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्याि माम शुच: ।। (गीता 18/66)
अर्थात् सभी साधनों को छोड़कर केवल नारायण स्वरूप गुरु की शरणगत हो जाना चाहिए। वे उसके सभी पापों का नाश कर देंगे। शोक नहीं करना चाहिए। जिनके दर्शन मात्र से मन प्रसन्न होता है, अपने आप धैर्य और शांति आ जाती हैं, वे परम गुरु हैं। जिनकी रग-रग में ब्रह्म का तेज व्याप्त है, जिनका मुख मण्डल तेजोमय हो चुका है, उनके मुख मण्डल से ऐसी आभा निकलती है कि जो भी उनके समीप जाता है वह उस तेज से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। उस गुरु के शरीर से निकलती वे अदृश्य किरणें समीपवर्ती मनुष्यों को ही नहीं अपितु पशु पक्षियों को भी आनन्दित एवं मोहित कर देती है। उनके दर्शन मात्र से ही मन में बड़ी प्रसनन्ता व शांति का अनुभव होता है। मन की संपूर्ण उद्विग्नता समाप्त हो जाती है। ऐसे परम गुरु को ही गुरु बनाना चाहिए। हमारे बैकुंठवासी श्रीमज्जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी सुदर्शनाचार्य जी महाराज में परम गुरु के सभी गुण मौजूद थे और वर्तमान पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु रामानुचार्य स्वामी पुरूषोत्तमाचार्य जी महाराज में भी वे सभी गुण प्रत्यत्क्ष दिखाई देते हैं।
नारायण नारायण नारायण
नवीनतम वीडियो
- Nav Varsh Satsang 2023 (0...
- Shri Hanuman Jayanti 2022...
- Shri Ram Navami 2022 -10....
- Holi Satsang 2022
- Holi Rangotsav 2022
- Naam Daan 20.02. 2022
- Mahashivratri 2022
- कैसे पहुंचें आश्रम
- सेवा पंजीकरण
- नाम दान पंजीकरण
Follow us on
- नियम एवं शर्तें
- गोपनीयता नीति
- साइट मानचित्र
- Speakingtree
- Spirituality
- Gurus knowledge and disciples energy
गुरू का ज्ञान और शिष्य की ऊर्जा
गुरु पूर्णिमा के दिन हम गुरु-शिष्य परंपरा का सम्मान करते हैं। महान स्वप्नदद्रष्टाओं की पीढ़ियों ने वेदांत-आत्म-प्रबंधन के विज्ञान-को जीवित रखा था। गुरु शब्द का अर्थ है ‘अधंकार को दूर करने वाला’ । गुरु अज्ञान को दूर करके हमें ज्ञान का प्रकाश देता है। वह ज्ञान जो हमें बतलाता है कि हम कौन हैं; विश्व से कैसे जुड़ें और कैसे सच्ची सफलता प्राप्त करें। सबसे अधिक महत्वपूर्ण कि कैसे विश्व से ऊपर उठ कर अनश्वर परमानंद के धाम पहुंचे। आज के दिन हम फिर से अपने को मानव संपूर्णता के प्रति अपने आप को समर्पित करते हैं।
वेदांत का अध्ययन करें,उसे अंगीकार करें और उसी के अनुसार जीयें ताकि हम उसे भविष्य की पीढ़ियों को हस्तातंरित कर सके। वेदांत हमे बाहर से राजसी बनाता है ओर भीतर से ऋषि। बिना ऋषि बने भौतिक सफलता भी हमारे हाथ नहीं लगती है। शिक्षक का ज्ञान और छात्र की ऊर्जा का एक सम्मिलन एक जीवंत प्रगतिशील समाज के निर्वाण की ओर ले जाता है।
आज छात्रों की प्रवृत्ति शिक्षक को कमतर आंकना है, आज का दिन उस संतुलन को पुन:स्थापित करने में सहायक होता है। यह जीवन के हर क्षेत्र में गुरु के महत्त्व पर बल देता है। एक खिलाड़ी की प्रतिभा एक कोच की विशेषज्ञता के अंतर्गत दिशा प्राप्त करती है।
समर्पित संरक्षक गुरु एक संगीतकार की प्रतिभा को तराशता है। अध्यात्म के मार्ग में एक खोजी के मस्तिष्क का अज्ञान गुरु का प्रबोध दूर करता है। गुरु-शिष्य का संबंध सर्वाधिक महत्व का है। गुरु के लिये गोविंद जैसी श्रद्धा होती है। ब्रह्म-विद् और ब्रह्मज्ञानी तथा ईश्वरीय साक्षात्कार में स्थित गुरु जो सूक्ष्मतम आध्यात्मिक संकल्पनाओं को प्रदान करने मे समर्थ हो, उसके मार्गदर्शन के बिना आध्यात्मिक विकास असंभव है। गुरु के प्रति संपूर्ण समर्पण – प्रपत्ति – एक छात्र की सर्व प्रथम योग्यता है
इसका मतलब अंधानुकरण नहीं है। खोजी को सिखाये गये सत्यों पर सवाल उठाना, छानबीन और विश्लेषण करना चाहिये ताकि वह अपने व्यक्तित्व को समझ सके, आत्मसात कर सके तथा उच्चतर क्षेत्र तक उसका रूपांतरण कर सके। इसे प्रश्न कहते हैं। अंतत: सेवा ही एक श्रेष्ठ छात्र की पहचान है। क्योंकि बिना शर्त सेवा ही छात्र को विन्रमता का महत्व सिखाती है जो उसे गुरु के ज्ञान को ग्रहण करने के अनुकूल बनाती है ।
गुरु पूर्णिमा का उल्लेख व्यास पूर्णिमा की तरह किया जाता है। व्यास ने वेदों को संहिताबद्ध किया था। जिस किसी भी स्थान से आध्यात्मिक या वैदिक ज्ञान प्रदान किया जाता है उसे वेदांत में व्यास के अद्वितीय योगदान को स्वीकार करने के लिये व्यासपीठ कहा जाता है।
सभी शिक्षक अपना स्थान ग्रहण करने के पहले व्यास के सामने नमन करते हैं। उनका सम्मान प्रथम गुरु की तरह किया जाता है, हालाँकि गुरु-शिष्य परंपरा का आरंभ उनके बहुत पहले हो चुका था। व्यास ऋषि पराशर और मछुहारिन सत्यवती के पुत्र और प्रसिद्ध ऋषि वशिष्ठ के पोते थे। वे ऋषि पिता के ज्ञान और मछुहारिन की व्यवहारिकता की साकार मूर्ति थे। जीवन में आगे बढ़ने के लिये दोनों को अपनाना अनिवार्य है। हिंदू कैलेण्डर के अनुसार व्यास का जन्म आषाढ़ की पूर्णिमा को हुआ था। ‘पूर्णिमा’ प्रकाश का प्रतीक है और व्यास पूर्णिमा आध्यात्मिक प्रबोधन की ओर संकेत करती है। व्यास महाकाव्य महाभारत के रचयिता थे।
महाभारत न केवल एक कला, काव्यात्मक श्रेष्ठता और मनोरंजन की कृति है, बल्कि जीवन के बारे में इसकी उपयोगी शिक्षाओं और भागवत गीता के अमर संदेश ने युगों से भारतीयों की पीढ़ियों को प्रेरित किया है। ऑलिवर गोल्डस्मिथ के शब्दों मेँ “और वे निहारते रहे/और विस्मय बढ़ता गया/कि एक मस्तक में इतना सब ज्ञान कैसे सिमट गया”, इस बात की सटीक अभिव्यक्ति है कि व्यास इतने महान दृष्टा थे और गुरु पूर्णिमा के दिन हम उनका सम्मान करते हैं।
लेखक के बारे में
लेखक हिंदी स्पीकिंग ट्री डेस्क
Hindi Speaking Tree is a leading Hindi website for spiritual and mythology content. यहाँ आप आध्यात्मिक गुरुओं के विचारों के साथ आध्यात्मिक विकास, सकारात्मक जीवन, आत्मिक खोज, और जीवन के सभी पहलुओं पर ज्ञान को हिंदी में पढ़ सकते हैं।
शेयर करें |
IMAGES
VIDEO