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जीवन में धर्म का महत्व पर निबंध Essay on The Importance of Religion in Life in Hindi language

जीवन में धर्म का महत्व पर निबंध Essay on The Importance of Religion in Life in Hindi language : नमस्कार मित्रों आपका हार्दिक अभिनन्दन है, मानव जीवन में धर्म का क्या स्थान है इस विषय पर आधारित यह निबंध, भाषण, स्पीच, अनुच्छेद, पैराग्राफ यहाँ दिया गया हैं.

धर्म की स्थापना का मूल उद्देश्य व्यक्ति के जीवन का उत्थान अर्थात उनके चरित्र का परिष्कार करना होता हैं, जीवन और धर्म के सम्बन्धों को इस निबंध में बताने की कोशिश की गई हैं.

Essay on The Importance of Religion in Life in Hindi

300 शब्द, जीवन में धर्म निबंध.

दुनिया में विभिन्न प्रकार के धर्म, मत, मजहब और संप्रदाय हैं जिनमें से प्रमुख धर्म सनातन हिंदू धर्म है जिसका न आदि है न अंत है। हिंदू धर्म से ही दुनिया के अन्य धर्म निकले हुए हैं, जिनकी अपनी अपनी विचारधारा है और अपने अपने भगवान है।

दुनिया में जितने भी धर्म वर्तमान के समय में मौजूद हैं वह सभी धर्म सभी इंसानों को नेक इंसान बनने की सीख देते हैं और सभी को इंसानियत के रास्ते पर चलने का पैगाम देते हैं।

हालांकि कुछ ऐसे भी भटके हुए नौजवान हैं जो धर्म के नाम पर दूसरे धर्म के लोगों को गाली देते हैं और आतंकवाद फैलाते हैं जो कि किसी भी धर्म के द्वारा नहीं सिखाया जाता है।

सभी धर्म लोगों को इंसानियत सिखाते हैं और सर्वधर्म समभाव की भावना सिखाते हैं। धर्म के द्वारा हमें पहचान मिलती है। धर्म हर व्यक्ति को एक दूसरे के दुखों को बांटने की सीख देता है ना कि दूसरों से जलन रखने के बारे में बताता है।

चाहे कोई भी धर्म क्यों ना हो, हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए। हमारे देश में विभिन्न धर्म के लोग रहते हैं जो आपस में अत्याधिक प्रेम करते हैं और इसीलिए हमें यह गर्व करना चाहिए कि इतने धर्म होने के बावजूद भी हमारे देश में सभी धर्मों को सम्मान दिया जाता है।

हमें कभी भी किसी भी धर्म की बुराई नहीं करनी चाहिए। धर्म के द्वारा हमें मानवता की और इमानदारी की सीख मिलती है।

हमें हमारे जीवन में धर्म की उतनी ही आवश्यकता होती है जितना कि एक अनाथ बच्चे को अभिभावकों की। धर्म से ही हमारी पहचान इस सृष्टि पर होती है।

धर्म का पालन करके हम मोक्ष के रास्ते को अपने लिए आसान कर सकते हैं साथ ही अपने ईश्वर के और भी करीब जा सकते हैं।

अपने धर्म का प्रचार करके हम वास्तव में अपने धर्म के सेनानायक बन सकते हैं। धर्म से ही इंसानों का नैतिक मूल्य तय होता है और उसी नैतिक मूल्यों पर चलकर के इंसान अपने जीवन में सम्मान प्राप्त करता है और अपने धर्म का अगुआ बनता है।

जीवन में धर्म का महत्व पर निबंध 600 शब्द

हमारी दुनिया विविधता से भरी है जहाँ अलग अलग मतों को मानने वाले लोग निवास करते हैं. एक मोहल्ले में रहने वाले बीस सदस्यों के धर्म, मत, मजहब एवं विचार भिन्न होते हैं. इस आधार पर कह सकते है कि प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक धर्म है.

संसार के अधिकतर धर्मों का प्रादुर्भाव एशियाई भागों में हुआ था. सभी की स्थापना के मूल में मानवता, भाईचारे दया करुणा और सभी के मूल में निहित है.

अब तक के ज्ञात धर्मों में हिन्दू सनातन धर्म को विश्व का सबसे प्राचीन एवं वैज्ञानिक धर्म माना जाता हैं. जो मानव मानव से ही नहीं प्रकृति सम्पूर्ण जीव जगत के अस्तित्व को स्वीकार करने के साथ ही उन्हें सम्मान से स्वीकार करता हैं.

हिन्दू धर्म की शिक्षाओं का केंद्र मानव को आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देता हैं. जीवन में प्रत्येक क्षण चाहे वो सुख अथवा विपदा के हो मनुष्य को किस तरह व्यवहार करना चाहिए.

व्यक्ति को दूसरों के साथ किस तरह के सम्बन्ध स्थापित करने चाहिए. दूसरों का सम्मान, मर्यादा, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, दया, करुणा, अहिंसा, मानवता आदि के भावों को मनुष्य में जन्म देने वाला धर्म ही हैं.

धर्म न केवल लोगों को जोड़ने वाला होता हैं बल्कि इंसान के लिए करने योग्य क्या है तथा त्यजित क्या है इन्हें न केवल सिधांत के रूप में बताता हैं बल्कि क्यों अमुक व्यवहार या वस्तु का प्रयोग नहीं करना चाहिए

इसके क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं क्या अच्छी बातें व्यक्ति के उत्थान में सहायक हो सकती है आदि का वैज्ञानिक मार्गदर्शन धर्म अपने ग्रंथों के जरिये मानव के पास पहुंचाता हैं.

विश्व के विभिन्न भागों में हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, जैन, सिख, ज्यूस, क्न्फ्युसियस धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं. जिन्के मानने वालों की संख्या कही अल्प तो कहि बहुल हैं. सांख्यिकी के आधार पर किसी धर्म को छोटा या बड़ा इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि सभी धर्मों का सार मानव कल्याण हैं.

धर्म एक व्यापक एवं जटिल अवधारणा हैं जो गहन अध्ययन का विषय हैं. कई वर्षों की मेहनत के बाद लोग धर्म को समझ पाते हैं जबकि आज के युग में हम धर्म के नाम पर दुनियां में जो आतंकवाद और मानव सभ्यता के नाश का चित्र देख रहे हैं.

वह धर्म की संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों का उत्पाद भर हैं. एक सच्चा धर्म कभी दूसरे व्यक्ति से बैर रखना नहीं सिखाता चाहे वह आपसे अलग दीखता हो उनके विचार आपसे मेल न खाते हो या उसकी पूजा पद्धति भिन्न हो.

मार्क्स ने धर्म को अफीम की तरह एक नशा माना हैं जबकि यदि हम विवेकशील होकर धर्म जैसे हिंदुत्व आदि का अध्ययन करे तो मार्क्स का कथन गलत सिद्ध होता हैं.

धर्म कभी इंसान को सकीर्ण या अंध भक्ति नहीं सिखाता बल्कि व्यक्ति के नजरिये को स्व से हटकर पर पर केन्द्रित करता हैं.  अपने सुख दुःख से ऊपर उठाकर मानव मात्र सम्पूर्ण संसार को अपना परिवार मानते हुए उनके हित के लिए कार्य करने की प्रेरणा देता हैं.

जीवन में हम ऐसी पद्धति को चुनते है जिसमें न केवल हमारा हित है बल्कि हमसे सम्बन्धित प्रत्येक व्यक्ति का हित निहित हैं धर्म का अर्थ नियम सम्मत आचरण हैं जिसमें नैतिकता हो. झूठ न बोलना धर्म की एक शिक्षा है जो प्रत्येक मानव के लिए सुख कारी हो सकती हैं.

किसी जीव के प्रति हिंसक व्यवहार न करना एक धर्म की शिक्षा हो सकती हैं मगर यह अनिवार्य नहीं है कि सभी धर्म भी यही सीख दे, ऐसे में धार्मिक मतभेदों का जन्म होता हैं

ये छोटे छोटे विचार आगे बढ़कर धर्मयुद्ध जैसे जटिल प्रकार्यों को जन्म देते हैं जिसकी विभीषिका मानव इतिहास में समय समय पर दोहराई गई हैं.

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True Religion Essay In Hindi

सच्चा धर्म पर निबंध – True Religion Essay In Hindi

सच्चा धर्म पर निबंध – (essay on true religion in hindi), बैर नहीं मैत्री करना सिखाते हैं धर्म – religion teaches friendship not friendship.

  • प्रस्तावना,
  • धर्म के तत्व,
  • धर्म और सम्प्रदाय,
  • भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या,
  • सन्तों, फकीरों और साहित्यकारों के उपदेश,
  • सच्चा धर्म और उसकी शिक्षा,

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

सच्चा धर्म पर निबंध – Sachcha Dharm Par Nibandh

प्रस्तावना– राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने भारत भूमि की उदार और सहिष्णु छवि को अपनी पंक्तियों में उतारते हए कहा है

भारत माता का मन्दिर यह, समता का सम्वाद यहाँ। सबका शिव कल्याण यहाँ, हैं पावें सभी प्रसाद यहाँ।।

भारत–भूमि की महानता उसकी विशाल जनसंख्या अथवा भू–क्षेत्र के कारण नहीं, अपितु उसकी भव्य और अनुकरणीय उदार परम्पराओं के कारण रही है। आचार, विचार, चिन्तन, भाषा और वेशभूषा की विविधताओं को राष्ट्रीयता के सूत्र में पिरोकर भारत ने मानवीय एकता का आदर्श उपस्थित किया है।

धर्म के तत्व– भारतीय मान्यता के अनुसार धैर्य, क्षमा, आत्मसंयम, चोरी न करना, पवित्र भावना, इन्द्रियों पर नियन्त्रण बुद्धिमत्ता, विद्या, सत्य और क्रोध न करना ये धर्म के दस लक्षण हैं।

सभी धर्म इनको अपना आदर्श और अपना अंग मानते हैं। महाभारत में कहा गया है कि जो सब धर्मों को सम्मान नहीं देता, वह धर्म नहीं अधर्म है। मनुष्य को मनुष्य का गला काटने की दुष्प्रेरणा, दूसरों का घर जलाने की और नारियों के अपमान की कु–शिक्षा अधर्म है और ईश्वर का घोर अपमान है।

धर्म और सम्प्रदाय– धर्म अत्यन्त व्यापक विचार है। इसमें मानवता के श्रेष्ठ विचार और भाव निहित हैं। धर्म किसी एक व्यक्ति के उपदेश या शिक्षाओं को नहीं कहते। किसी एक ही महापुरुष, पैगम्बर या अवतार के उपदेशों से सम्प्रदाय बनते हैं, धर्म नहीं।

भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या– वैदिक धर्म या सनातन धर्म संसार का आदि धर्म है। यह किसी पुरुष विशेष के उपदेशों, शिक्षाओं या संदेशों पर आधारित नहीं है। इसकी अनेक शाखाएँ तथा उपशाखाएँ हैं। बौद्ध, जैन, सिख आदि सम्प्रदाय इसी से विकसित हुए हैं। विदेशी आक्रमणकारियों के साथ भारत में इस्लाम तथा ईसाई धर्मों (सम्प्रदायों) का आगमन हुआ है।

भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या भारत के मूल सनातन धर्म तथा अन्य सम्प्रदायों के वैचारिक अन्तर से सम्बन्धित है। साम्प्रदायिक कटुता के कारण अपने ही सम्प्रदाय को अच्छा मानना, दूसरों को बलपूर्वक अपना धर्म अपनाने को बाध्य करना आदि साम्प्रदायिकता के मूल कारण हैं। भारत में यह समस्या मूलतः हिन्दू और इस्लाम धर्म के बीच है।

साम्प्रदायिक द्वेष के जहर को इस देश ने शताब्दियों से झेला है। 1947 में देश के विभाजन के समय खून की जो होली खेली गई थी वह आज भी कोढ़ के रूप में चाहे जब फूट निकलती है। इसका परिणाम होता है–हत्या, आगजनी, लूट, बलात्कार और अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में देश की बदनामी।

करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति का विनाश होता है, द्वेष की खाइयाँ और गहरी हो जाती हैं। इस साम्प्रदायिक दुराग्रह ने ही तो सुकरात को जहर परोसा, ईसा को सूली पर चढ़ाया और गांधी के जिगर में गोली उतारी है।

सन्तों, फकीरों और साहित्यकारों के उपदेश– भारत के सन्तों, फकीरों तथा साहित्यकारों ने सदा साम्प्रदायिक एकता का संदेश तथा उपदेश दिया है। सबसे पहले सन्त कबीर हैं जिन्होंने हिन्दुओं तथा मुसलमानों को धर्म का मर्म न समझने के लिए फटकारा है–

हिन्दू कहै मोहि राम पियारा, तुरक कहै रहिमाना। आपस में दोऊ लरि–लरि मुए, मरम न काहू जाना।

इसी प्रकार साम्प्रदायिक एकता का उपदेश देने वाले सन्तों की एक लम्बी श्रृंखला है। इस एकता के सर्वश्रेष्ठ पक्षधर महात्मा गांधी को कौन नहीं जानता ? इकबाल ने कहा है कि मजहब कभी आपस में बैर करना नहीं सिखाता-

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा।

अकबर इलाहाबादी तो दशहरा और मुहर्रम साथ–साथ मनाने की कामना करते हैं-

मुहर्रम और दशहरा साथ होगा निबह उसका हमारे हाथ होगा। खुदा की ही तरफ से है यह संजोग……इत्यादि।

सच्चा धर्म और उसकी शिक्षा– सच्चा धर्म मानवता है। धर्म बैर नहीं सिखाता। वह तो एकता की शिक्षा देता है क्योंकि सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की सन्तान हैं। धर्म मित्रता की शिक्षा देता है, शत्रुता की नहीं।

उपसंहार– आज देश को साम्प्रदायिक सद्भाव की अत्यन्त आवश्यकता है। अन्तर्राष्ट्रीय शक्तियाँ और द्वेषी पड़ोसी हमें कमजोर बनाने और विखण्डित करने पर तुले हुए हैं। ऐसे समय में देशवासियों को परस्पर मिल–जुलकर रहने की परम आवश्यकता है।

मन्दिर–मस्जिद के नाम पर लड़ते रहने का परिणाम देश के लिए बड़ा घातक हो सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में बदनामी होती है। अर्थतन्त्र पर भारी बोझ पड़ता है। अतः हम प्रेम और सद्भाव से रहें तो कितना अच्छा है।

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Essay on Religion in India | Hindi

essay on religion in hindi

Here is an essay on ‘Religion in India’ especially written for school and college students in Hindi language.

धार्मिक व्यवस्था भी भारतीय व्यवस्था का एक भाग है । किसी भी सभ्यता और संस्कृति में धर्म का महत्वपूर्ण स्थान है । धर्म के मार्ग पर चलकर सतकर्मी, उच्च स्थान प्राप्त करते हैं तो धर्म ही व्यक्ति को जीवन का मार्ग दिखाता है ।

भारतीय व्यवस्था में सभी धर्मो को समान संरक्षण है जिसका प्रावधान भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भी किया गया है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य होगा । धर्मनिरपेक्षता का तात्पर्य है कि भारतवर्षे में सभी धर्मों को समान आदर होगा । किसी भी धर्म के लोगों के साथ कोई भी भेदभाव नहीं किया जायेगा तथा राज्य किसी भी धर्म को संरक्षण नहीं देगा अर्थात राज्य द्वारा किसी भी धर्म विशेष को प्रोत्साहित नहीं किया जायेगा ।

भारतवर्ष में हिन्दू, मुस्लिम, सिक्स, ईसाई, बौद्ध, जैन, वहाई अनेको धर्मों के लोग निवास करते हैं । लेकिन सभी धर्मों के लोगों को सम्पूर्ण भारतवर्ष में किसी भी स्थान पर अपने धर्म का प्रचार प्रसार करने की स्वतन्त्रता है अपने धर्म के प्रचार प्रसार के लिए धार्मिक  संस्था स्थापित करने की स्वतंत्रता है ।

यही कारण है कि भारतवर्ष में मंदिरों, मस्जिदों, गुरूद्वारों, चर्च आदि में प्रार्थना करते हुए नमाज अदा करते हुए, गुरूद्वारों में सत्संग, भजन आदि करते हुए देखा जा सकता है । भारत के लोग ही शायद दुनिया में ऐसे हैं जो सभी धर्मों का आदर करते हैं । सभी धर्मों की मान्यता रीति-रिवाजों आदि से भली-भांति परिचित होते हैं । भारत मे ईद महोत्सव पर हिन्दू भी मुस्लिम भाईयों के साथ मिलकर उनके घर पर दावत खाते हैं ।

खुशी मनाते हैं रमजान के महीनों में रोजा इफ्तार की दावत में हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख व इसाई सभी धर्मो के लोग सम्मिलित होते हैं और उनके साथ मिलकर खुशी से त्यौहारों का आनन्द लेते हैं । मुस्लिम भाई भी हिन्दू भाईयों के साथ मिलकर उनकी दीपावली को सहर्ष मनाते हैं । होली के रंग में भी सब साथ मिलकर होली के त्यौहार का आनन्द उठाते हैं ।

उस दिन न तो कोई हिन्दू होता है न कोई मुस्लिम, न कोई सिक्स न कोई इसाई, होली के रंग में रंगकर सब केवल एक ही मनुष्य, एक ही नागरिकता, सब भारतीय ही दिखाई देते हैं । उस दिन समस्त भारतीयों का रंग एक जैसा ही होता है वैशाखी को भी समस्त भारतीय एक साथ मिलकर मनाते हैं ।

लौहड़ी में भी कोई हिन्दू, मुस्लिम का भेदभाव नहीं होता सब मिलकर लोहड़ी का त्यौहार मनाते हैं तो सम्पूर्ण देश में क्रिसमस की धूम भी एक साथ देखी जा सकती है । भारतवर्ष की धार्मिक व्यवस्था विश्व के केसी भी देश की धार्मिक व्यवस्था का आदर्श हो सकती है ।

जब हम देखते हैं कि ईद महोत्सव पर या रोजा  इफ्तार में, होली, दीपावली, क्रिसमस, लोहड़ी और बैशाखी में कोई अन्तर दिखाई नहीं देता । सभी धर्मों के त्यौहारों का आनन्द सम्पूर्ण भारतवासी बड़े ही आनन्द के साथ उठाते हैं । भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता का प्रावधान होने के साथ ही भारतीय जनता की मुफलिसी के कारण देश की सरकार संविधान से भी बढ़कर देश के मुस्लिम भाईयों को हज यात्रा पर भेजने के लिए सरकारी अनुदान की व्यवस्था करती है ।

ADVERTISEMENTS:

क्योंकि भारत में लोगों की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं है कि वे अपने बल पर हज यात्रा कर सके इसलिए देश के लोगों की भावनाओं की कद्र करते हुए सरकार द्वारा हज यात्रा पर अनुदान (जो सब्सीडी के रूप में प्रदान किया जाता है) की व्यवस्था की गई है क्योंकि जिस देश में लोगों को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती और वे लोग विदेश यात्रा पर जाने का तो विचार भी नहीं कर सकते लेकिन शुक्र हो देश की सरकार का जो हज यात्रा पर आने वाले कुल खर्च पर सब्सीडी के रूप में अनुदान उपलब्ध कराती है अन्यथा तो हमारे मुस्लिम भाई हज यात्रा पर जाने से ही वंचित रह जायें ।

लेकिन भारतीय धार्मिक व्यवस्था का यह एक सकारात्मक पहलू है और वो भी संवैधानिक प्रावधाने से बढ़कर जब देश का संविधान किसी भी धर्म को प्रोत्साहित करने से इंकार करता है लेकिन बावजूद इसके मुस्लिम धर्म के प्रोत्साहन को सरकार द्वारा संरक्षण प्रदान किया जाता है ।

परन्तु अन्य धर्मो के भारतीयों द्वारा इस धार्मिक संरक्षण का आज तक कोई विरोध तक नहीं किया गया क्योंकि भारतवासी सभी धर्मो को एक समान भाव से देखते हैं और समझते भी हैं कि यदि हम ही इस प्रकार के धार्मिक संरक्षण का विरोध करेंगे तो हमारे मुस्लिम भाईयों में आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति हज यात्रा नहीं कर पायेंगे तभी तो भारतवर्ष दुनिया का सर्वाधिक सुरक्षित लोकतंत्र और ”सर्वधर्म सम्भाव” के सिद्धान्त का पालन करने वाला एकमात्र देश हो सकता है ।

भारत में गरीबी है भुखमरी है, अशिक्षा है बेरोजगारी है लेकिन फिर भी सभी धर्मो को साथ लेकर चलने की मानसिक स्वस्थता भी है तभी तो कोई हिन्दू हज यात्रा पर सरकार द्वारा दिये जाने वाले अनुदान का विरोध नहीं करता क्योंकि भारतीय हिन्दू सभी धर्मों को समान भाव से देखते हैं और यह स्थिति भारतीय सिक्खों को भी है तो कुछ यह स्थिति भारतीय इसाईयों की, बौद्ध, जैनी सभी धर्मों के लोग जो भारतवर्ष में निवास करते हैं सभी को आपस में बन्धुत्व भावना से देखते हैं ।

यही कारण है कि आजादी के तिरेसठ वर्ष बाद भी हम जब एक हैं और विस्टन चर्चिल की भविष्यवाणी को झूठला रहे हैं कि यह देश अधिक समय तक एकजुट नहीं रह पायेगा और इसके टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे । लेकिन आज तिरेसठ वर्ष बाद भी भारत एक अखण्ड देश के रूप में विद्धमान है तभी तो विश्व पटल पर सबसे बड़े लोकतन्त्र होने का गौरव प्राप्त कर रहा है ।

यही कारण है कि आज विश्व समुदाय की दृष्टि भारतवर्ष की ओर टकटकी लगाये हुए है जिसके पीछे भारतवर्ष में विद्यमान विभिन्न मत विभिन्न सम्प्रदाय और विभिन्न धर्मों के लोग हैं । भारतवर्ष में धार्मिक अनेकता में भी एकता है ।

यहां पर अनेकों रमणीय धार्मिक स्थल हैं जो भारतवर्ष के गौरव को और अधिक गौरवान्वित कर रहे हैं और भारतवर्ष में विभिन्न स्थानों पर होने के बाद भी भारत की एकता की मिशाल पेश कर रहे हैं जम्मू-कश्मीर में माता वैष्णों देवी का मंदिर हो या राजस्थान में बालाजी हनुमान का मंदिर उत्तराखण्ड में हरिद्वार हो या उत्तर प्रदेश में कांशी, मथुरा और इलाहाबाद में गंगा-यमुना का संगम, कर्नाटक में तिरूपति बालाजी का मन्दिर, गुजरात का अक्षरधाम मन्दिर, दिल्ली का लोटस टैम्पल व अक्षरधाम मन्दिर, महाराष्ट्र में साई बाबा का मन्दिर आदि सभी धार्मिक स्थल हैं ।

जहां सम्पूर्ण भारतवर्ष की अनेकता में एकता की छवि के दर्शन होते हैं । भारत जितना सामरिक दृष्टि से शक्तिशाली है उससे कहीं अधिक शक्तिशाली धार्मिक दृष्टि से भी है यही कारण है कि भारत देश सवा सौ करोड़ जनता के बोझ से भी बिखरने का नाम नहीं ले रहा है बल्कि और अधिक मजबूती के साथ इस देश के विकास में सहयोग कर रहा है ।

भारतवर्ष दुनिया का एकमात्र देश है जहा एक ही देश में विभिन्न धर्मों की अनुयायी एक साथ प्रेम भाव के साथ अपना जीवन यापन कर रहे हैं । षड़यन्त्र कर्ता समय-समय पर इस देश के वायुमण्डल में जहर घोलने का कार्य कर रहे है ।

लेकिन भारतीय जनता की समझदारी के बल पर सब कुछ अपने आप ही समाप्त होता जा रहा है । भारतवर्ष में वैसे तो प्रत्येक घटना के पीछे कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है लेकिन बिना उद्देश्य वाली घटना के साथ भी यहां पर कोई न कोई उद्देश्य जोड़ दिया जाता है ।

तभी तो अधिकतर आतंकवादी घटनाओं में एक धर्म विशेष के लोगों का नाम जोड़कर देखा जाता है । वे लोग अपना स्पष्टीकरण देते-देते थक जाते हैं क्योंकि भारतवर्ष में धर्म की स्वतंत्रता है लेकिन कोई जुलूस, सभा आदि के लिए कानून व्यवस्था के नाम पर भी काफी कुछ करना पड़ जाता है तभी तो भारतीय धर्माधिकारियों को देश में वी॰आई॰पी॰ का दर्जा हासिल है भारत में धर्म शक्तिशाली है तभी तो धर्म के नाम पर दुकान चलाने वाले लोगों को अब धर्माधिकारी की संज्ञा दी जाती है ।

वो भी कुछ इस तरह कि:

धर्म की जिसमे आत्मा थी उसे धर्मात्मा कहते थे ।

धर्म पर जिसका अधिकार था उसे धर्माधिकारी कहते थे ।

वेदों के ज्ञान का जो भंडार था उसे धर्म कार्यकारी कहते थे ।

धर्म पर जो चलना सिखाते थे उसे धर्म चालक कहते थे ।

मगर आज की दुनिया  में धर्म के नाम पर ।

धन को धरके माल बनाये उसे धर्मात्मा कहते है ।

इर्म्पोटीड गाडी में चलकर एस्कोर्ट साथ मे लेकर ।

चले मंत्री जिसको सिर झुकाये उन्हे धर्माधिकारी कहते हैं ।

वेदों का जिनको ज्ञान नही पर बात ज्ञान की ।

करते हैं उन्हे धर्मकार्यकारी कहते हैं ।

विलासिता से भरे हुए सत्संगो को कर करके वो धर्मचालक बन जाते हैं ।

सबसे आसान काम है इस दुनिया में ।

धर्म के नाम पर बेवकूफ बनना और बनाना ।

कोई यहाँ लुटा कोई वहाँ लुटा ।

कोई धन पर लुटा कोई गुलबदन पर लुटा ।

अमर वो हुआ जो जाति धर्म और वतन पर लुटा ।

भारतीय धार्मिक व्यवस्था के अर्न्तगत प्राचीन काल से ही व्रत या उपवास रखना धार्मिक आस्था का एक अंग है जिसमें पुरूष-स्त्रियां सुबह से ही बिना कुछ खाये-पीये रहते हैं । दोपहर में लंच के समय थोड़ा बहुत खाना खाते हैं । हिन्दू धर्म में जहां दिन में बिना कुछ खाये-पीये रहना उपवास कहलाता है तो मुस्लिम धर्म के अन्तर्गत उसी प्रकार का कार्यक्रम रोजा कहलाता है ।

उपवास या रोजा आदि के विषय में लोगों की अलग-अलग मान्यता है । कुछ लोगों का मत है कि प्राचीन काल में उपवास रखना आस्था का प्रतीक होने को इंगित करता है तो कुछ लोगों की मान्यता है कि जब देश में अनाज का उत्पादन कम होता था तो देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने लोगों से सप्ताह में एक दिन उपवास रखने की अपील की थी ।

भारतीय जनता स्वयं द्वारा उगाये अनाज पर ही निर्भर हो सके और विदेशों से अनाज का आयात न करना पड़े इसलिए सप्ताह में एक दिन उपवास रखने की अपील की गई थी । वर्तमान समय में कुछ लोगों की धारणा है कि उपवास रखना आस्था से जुड़ा हुआ तो है ही साथ ही स्वास्थ्य से भी उपवास का गहन सम्बन्ध है जो लोग अत्यधिक खाने के शौकीन हैं और कार्य कम करते हैं ।

उनके लिए साप्ताहिक उपवास रखना स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उचित बताया जाता है तो कुछ धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों के लिए उपवास रखना धार्मिक आस्था की बात है तो कुछ लोगों के लिए केवल स्वस्थ रहने का माध्यम मात्र और यदि उपवास रखना या अनशन करना किसी विरोध स्वरूप हो तो अपनी मांगों को मनवाने के लिए तो उपवास का महत्व इतना अधिक बढ़ जाता है कि उपवास करने वाले की देखभाल के लिए डाक्टर, सुरक्षा के लिए पुलिस बल की व्यवस्था तत्काल प्रभाव से की जाती है और उपवास करने वाले व्यक्ति की वैधानिक मांगों पर विचार कर उनको मानने के लिए विवश होना पडता है ।

भारतीय व्यवस्था में उपवास का महत्व अंहिसा के रास्ते पर चलकर विरोध प्रकट करने का एक सशक्त माध्यम है जिसको स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कितने ही आन्दोलनकारियों ने अहिंसात्मक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और अंग्रेजों के विरूद्ध अपना विरोध प्रकट किया ।

भारतीय इतिहास में सर्वाधिक लम्बा और आमरण उपवास महान देशभक्त और सच्चे क्रांतिकारी आदरणीय जतिनदास जी ने किया था जिन्होनें आजादी की लड़ाई लड़ते हुए जेल जाने पर जेल में कैदियों को मिलने वाली सुविधाओं की मांग करते हुए चौसठ दिन के उपवास के उपरान्त अपने प्राण त्याग दिये ।

देश के लिए शहीद होने का गौरव प्राप्त किया था । तब से ही भारतवर्ष में उपवास को एक महत्वपूर्ण अंहिसात्मक हथियार के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है और उपवास के महत्व को केवल भारतीय जनमानुष ही समझता है अन्य नहीं ।

भारतीय धार्मिक व्यवस्था में वर्तमान समय में सत्संगों के संगठनों की बाढ़ सी आ गई है । जहां देखो जिस शहर में देखों कोई न कोई सत्संग संगठन सक्रिय है सभी सत्संग संगठन ईश्वर परमात्मा की बात करते हैं अच्छाई बुराई पर चर्चा करते हैं हजारों लाखों सत्संगी एक स्थान पर बिना किसी पुलिस व्यवस्था के संगठित होकर सत्संग का आयोजन करते हैं ।

अपने गुरू की बातों को ध्यान से सुनते हैं । बेशक उन पर अमल नहीं करते लेकिन जब तक सत्संग स्थल पर होते हैं तब तक पूरे मनोयोग से सत्संग सुनते हैं यहां तक कि जो सत्संगी अपने घर पर माता-पिता की सेवा करना बेकार में समय बर्बाद करना समझते हैं । विशेषकर ऐसे सत्संगी पुरूष-स्त्रियाँ सत्संग स्थल पर जाकर झाडू लगाना, जूते-चप्पल उठाना, पानी पिलाना आदि कार्य करते हैं ।

जिसे सत्संग की भाषा में सत्संगी लोग सेवा करना कहते हैं । धन्य हैं ऐसे मूर्ख भारतवासी जो जन्म देने वाले माता-पिता की सेवा करने के स्थान पर सत्संग में सेवा करते हैं और मानसिक शान्ति की खोज में अपना अमूल्य समय नष्ट करते हैं ।

भारतीयों की सबसे बड़ी विशेषता तो यह कही जा सकती है कि ये सत्संग जैसे आयोजन के लिए पचासों किलोमीटर की दूरी तय करके लाखों की संख्या में एक स्थान पर एकत्रित होते हैं । धर्म-कर्म की बात करते हैं कुछ घंटे एक साथ गुजारने के बाद पुन: अपने गन्तव्य के लिए वापिस प्रस्थान करते हैं ।

सबसे महत्वपूर्ण बात जो सत्संगी संगठनों की देखने में आयी है वह यह है कि बिना किसी पुलिस बल के व्यवस्थति रूप में लाखों की भीड़ का आयोजन सफलतापूर्वक निपट जाता है । यह कोई बात नहीं है कौन मन से सत्संगी है और कौन तन से बल्कि देखा तो यह भी जाता है कि जिन विषयों पर सत्संगों में सर्वाधिक चर्चा होती है उन्हीं विषय भोगों में सत्संगी लोग सर्वाधिक संलग्न रहते हैं । धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की बात करने वाले सत्संगी सर्वाधिक इन्हीं विषयों में डूबे रहते हैं । इनकी कथनी और करनी में भारी अन्तर देखा गया है ।

भारतवर्ष में सत्संग के नाम पर चलने वाली दुकान अच्छी तरह फल फूल रही है और उनको फलने-फूलने में कुछ मूर्ख भारतीयों की भी अच्छी खासी भूमिका है जो सत्संग के नाम पर अपना अच्छा महत्वपूर्ण समय नष्ट कर लेते हैं ।

ऐसे संकीर्ण मानसिकता के लोगों के बल पर ही इस देश की जनता को गुमराह करने का कार्य कुछ सत्संगी संगठन कर रहे हैं । अन्यथा भारत की धार्मिक व्यवस्था, भारतीय दर्शन का अध्ययन करने पर ही सही अर्थों में दर्शित होती है ।

भारतीय धार्मिक व्यवस्था में वर्तमान समय में एक आस्था का प्रचलन जो तेजी के साथ बढ रहा है वह है कांवड यात्रा जो विशेषत: भारतीय युवाओं के जोश के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है । सम्पूर्ण भारतवर्ष में विशेषकर पश्चिमी उ॰प्र॰ तो कांवड़ यात्रा के समय ठहर सा जाता है व्यवसाय पूर्णत: ठप हो जाता है ।

दिल्ली जाने के लिए लोहे के चने चबाना पड़ता है सरकार को भी करोड़ो रूपये के राजस्व की हानि होती है राजमार्ग को आम जनता के लिए पूर्णत: बंद कर दिया जाता है । दिल्ली से हरिद्वार, देहरादून की यात्रा दुगुनी हो जाती है आम जनता जो कांवड़ यात्रा में भाग नहीं लेती वह कांवड़ यात्रा के कारण होने वाली अव्यवस्था से त्राहि-त्राहि करने लगती है ।

कांवड़ यात्री तो अपनी श्रद्धा भक्ति के बल पर यात्रा करते हैं और आम जनों को जो परेशानियों का सामना कांवड़ यात्रा के कारण करना पड़ता है वह तो अवर्णनीय है जब दस रूपे मे होने वाली यात्रा पचास रूपये तक पहुंच जाती है एक घंटे में होने वाला कार्य आठ घंटे तक पहुंच जाता है तो क्या कांवड़ यात्रा के कारण होने वाली असुविधा आम जनों की सहानुभूति ले पाती है यद्यपि भारतीय धार्मिक व्यवस्था में कोई भी किसी भी धर्म के आयोजन में यात्रा में कोई विश्व उत्पन्न करने के स्थान पर उस आयोजन में सहयोग करते हैं यहा तक भी देखा जाता है कि हरिद्वार से कांवड यात्रा के मार्ग में पड़ने वाले स्थानों पर जहां मुस्लिम धर्म के लोग भी रहते हैं । कांवड़ यात्रियों को सेवा करने में पीछे नहीं हटते बल्कि बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं ।

जिससे भारत की एकता की मिशाल, भाई चारे की मिशाल पेश होती है और दर्शित होता है कि भारत में विभिन्न धर्मों के लोग बेशक रहते हैं लेकिन वे सब एक-दूसरे के धार्मिक आयोजन में भी भाई तारे की अनूठी मिशाल होती है तभी तो भारतीय संस्कृति श्रेष्ठ समझी जाती है ।

लेकिन कांवड़ यात्रा पर जाने वाले अधिकतर युवा उत्साह और जोश में कांवड़ यात्रा पर जाते हैं श्रद्धा और भक्ति भाव में कांवड़ यात्रा पर जाने वाले यात्री कम हो होते है । अधिकतर जोशीले नौजवान युवक ही कांवड़ यात्रा में असावधानी के कारण दुर्घटना का शिकार भी होते हैं और धार्मिक आस्था पर भी प्रश्न चिह्न लगा जाते हैं ।

हाल ही का उदाहरण बीघेनकी गांव गुड़गांव (हरियाणा) का है जहां से एक ही गांव के तेईस युवक होनहार नौजवान कांवड़ यात्रा में दुर्घटना का शिकार हो गये जो कहीं न कहीं हमारी आस्था पर भी प्रश्न चिह्न लगाते हैं ।

दुर्धटना वक्त की मांग हो सकती है लेकिन इतना दर्दनाक मंजर को सुनते ही आंखों में आंसू भर आते हैं । दादा को पोते की दुर्घटना की सूचना मिली तो वह भी अपने आप को संभाल न सके और गम में प्राण त्याग दिये ।

दुर्घटना का कारण जो भी हो गांव से युवा शक्ति का अंत हो गया  और  अंत हो गया उस आस्था का जो लाखों करोडो लोगों के दिलों में बसी थी सम्पूर्ण भारतवर्ष ने देखा और सुना तो क्या हमारी आस्था कहीं न कहीं अपने स्थान से अवश्य डिग्री होगी जब आस्था के जिस देव के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर श्रद्धालु हरिद्वार, ऋषिकेश, गोमुख पहुंचते हैं और वहीं उन श्रद्धालुओं के जीवन का अंत हो जाए तो क्या हम आस्था के उस देव को आस्था की उसी दृष्टि से देखेंगे जिसे हम अपना रक्षक, अपना भगवान, सब कुछ मानते हैं और वहीं हमारे जीवन का अंत हो जाये तो निश्चित ही आस्था के उस सागर में कहीं न कहीं कुछ कमी तो अवश्य दिखायी देगी ।

भारतीय धार्मिक व्यवस्था में जो एक नया ट्रेंड बनता जा रहा है वह है ढोंगी बाबाओं का राज । जो ढोंगी बाबा लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर अपना वर्चस्व स्थापित कर रहे हैं । ऐसा भारतीय धार्मिक व्यवस्था में भोले-भाले भारतीयों के कारण होता है जो अंधविश्वास के कारण धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं ।

भारतीय जनता अंधविश्वास को मानने वाली उसको पोषित करने वाली और अंधविश्वास के साथ श्रद्धा भाव रखने वाली है । जो कहीं भी किसी भी बाबा को भगवान का दर्जा देने में देर नहीं करती तभी तो दुनिया के किसी भी देश में इतने बाबा नहीं होंगे जितने भारतवर्ष में दिखायी देते हैं और भारतीय जनता द्वारा उनको उच्च दर्जा प्रदान किया जाता है ।

भारत में बाबाओं की पूजा होती है बाबा चाहे वो सच्चे हों या ढोंगी ये तो बाद का विषय होता है । जब बाबाओं की पोल खुलती है और उनकी सच्चाई जनता के सम्मुख आती है तो उनके श्रद्धालुओं की भावनाओं को गहरा आघात पहुंचता है तभी तो देश में आजकल अनेकों ढोंगी बाबाओं के साम्राज्य का अंत होता जा रहा है और भारतीय जनता कुछ हद तक जागरूक हो रही है और ढोंगी बाबाओं के साम्राज्य को समाप्त करने का कार्य कर रही है यही कारण है कि आये दिन एक न एक ढोंगी बाबा की कृत्रिम आस्था और धार्मिक व्यवस्था की पोल खुल रही है और ढोंगी बाबाओं को अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो रहा है ।

भारत देश साधुओं, ऋषि मुनियों का देश था, देश है और रहेगा । क्योंकि इस देश में जितना सम्मान साधुओं, बाबाओं, स्वामियों को मिलता है शायद ही किसी अन्य को मिलता है । भारत में साधुओं की भी कई श्रेणियां हैं एक श्रेणी में वे साधु बाबा आते हैं जो घर-घर जाकर मांग कर अपनी उदर पूर्ति करते हैं ।

ऐसे साधु बाबा भारत देश में निम्न श्रेणी के साधु बाबा माने जाते हैं । दूसरी श्रेणी के साधु जो मन्दिरों पर पुजारी का काम करते हैं और थोड़ा बहुत ज्ञान रखते हैं जिसके दम पर ग्रामीण आंचलों  में या स्लम बस्तियों में लोगों को गुमराह कर अपनी उदर पूर्ति करने का कार्य करते हैं । इनके अनुयायी उसी गांव या बस्ती तक सीमित होते हैं ।

अन्य श्रेणी के बाबा जो शहर में किसी अच्छी पॉश कालोनी में गुफा नुमा बेसमेन्ट मन्दिर बनाकर उस क्षेत्र के लोगों द्वारा अच्छा मान-सम्मान व दान पाकर अपना जीवन-यापन शाही अंदाज से करते है और इनमें कुछ बाबा ऐसे भी होते हैं जैसे हाल ही में दिल्ली में पकड़ में आये जो दिन में बाबा थे और रात में सैक्स रेकिट चलाने वाले करोड़ों के कारोबारी दलाल जो हाई प्रोफाईल लोगों को कॉल गर्ल सप्लाई करते     थे । इस प्रकार की श्रेणी भी बाबाओं की देखने को मिल जायेगी जो दुनिया के समस्त भौतिक सुख सुविधाओं का आनन्द उठा रहे हैं लेकिन कहेंगे कि हम बाबा हैं ।

आज भारत देश में चारों ओर बाबाओं का बोल बाला है एक अन्य श्रेणी के बाबा जो देश-विदेश में धार्मिक प्रवचन करते हैं । धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की बात करते हैं लेकिन अर्थ और काम में आकंठ डूबे हुए हैं, गृहस्थी जीवन जी रहे हैं, परिवार है, पत्नी, बच्चे सब हैं लेकिन कहने को सन्त है केवल माया बनाने का काम कर रहे हैं और लोगों को धार्मिक प्रवचन के नाम पर अपना अनुयायी बना रहे हैं । करोड़ो की सम्पत्ति देश-विदेश में है लेकिन कहने को सन्त है ।

संत महात्माओं का गृहस्थी से क्या लेना देना ? ये बाबा अपने आप को उच्च श्रेणी के बाबाओं में मानते हैं । इनको पुलिस सुरक्षा भी मिली होती है अर्थात इनको मरने का भी डर रहता है । साधू बाबा का जीवन-मरण से क्या लेना देना ? उसका जब बुलावा आयेगा तब चले जाना है फिर काहे पुलिस फोर्स की व्यवस्था ।

इसका अर्थ तो यह लगाया जाता है कि वे ढोंगी बाबा हैं जो धर्म के नाम पर सीधे-साधे भारतीय नागरिकों की ही नहीं तेज तर्रार विदेशी नागरिकों को भी अपने धार्मिक चंगुल में फंसा रहे हैं और वे फंस भी रहे      हैं । वैदिक काल में बड़े-बड़े विद्वान, ऋषि महात्मा हुआ करते थे जिनको महर्षि, राजर्षि आदि की संज्ञा दी जाती थी लेकिन वे सब जंगलों में घास-फूस की कुटियां बनाकर रहते थे । यहां तक कहा जाता है कि आचार्य चाणक्य जो अर्थशास्त्र के जनक कहे जाते हैं ।

उस वक्त चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री होते हुए भी जंगल में कुटी बनाकर रहते थे । जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सच्चे ऋषि, महात्मा, सन्त जो भी संज्ञा दी जाये जो वास्तव में ऐसे हैं उनको धन माया से क्या प्रायोजन । वे तो केवल इस मानव मात्र की भलाई करना और ज्ञान के प्रकाश को फैलाने में ही अपना सम्पूर्ण जीवन लगा देते हैं ।

इनका भौतिक सुख सुवधिाओं जैसे- वातानुकुलित गाड़ियां, पुलिस सुरक्षा, स्टार होटलों में ठहरना, अरबों रूपये की सम्पत्ति अर्जित करने में कोई रूचि नहीं दिखती । जो बाबा धन सम्पदा और भौतिक सुख सुविधाओं को अधिक महत्व देता है वह बाबा हो ही नहीं सकता । क्योंकि साधुओं के लिए धन तो धूल समान है ? इसलिए साधु लोग धन को महत्व नहीं देते ।

अगर कोई साधु धन को महत्व देता है तो वह साधु नहीं ढोंगी है । क्योंकि धन तो केवल भोगी लोगों का साधन है महात्माओं का नहीं । हाल ही का उदाहरण दक्षिण भारत के एक स्वामी का है जो हजारों करोड़ की सम्पत्ति के मालिक बताये जाते हैं । समस्त भौतिक सुख सुविधाएं उनके पास हैं ।

यहां तक कि राजनीतिक शक्ति भी लेकिन एक अभिनेत्री द्वारा राजदार होने पर उनका ऐसा पर्दाफास किया कि हजारों करोड़ का मालिक स्वामी को अंडरग्राउण्ड होना पड़ा । पुलिस भी खोजती रही और खोजते-खोजते आखिर हिमाचल प्रदेश में ढूंढ निकाला तथा गिरफ्तार करके अपने साथ ले गई ।

स्वामी के असली चेहरे को उजागर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका एक टी॰वी॰ चैनल ने अदा की और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण कार्य उस अभिनेत्री का रहा जिसने अपनी जान जोखिम में डालकर इस सराहनीय कार्य को अजाम दिया जिससे एक ढोंगी बाबा की वास्तविकता दुनिया को पता चल गई ।

ऐसे उदाहरणों से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस देश में बाबा किस तरह अपने लाखों, करोड़ों अनुयायियों की भावनाओं को अपने आनन्द के सागर में डुबोकर मौत के घाट उतार रहे हैं । वे ऐसा करते वक्त ये तक नहीं सोचते कि आप एक इंसान को इन लाखों, करोड़ों अनुयायियों की श्रद्धा भावना ने ही प्राणी श्रेष्ट भगवान का दर्जा हासिल करा रखा है ।

एक क्षण को भी ऐसा विचार इन ढोंगी बाबाओं के मन में नहीं आता । वे इतना तक विचार नहीं करते कि जिन अनुयायियों के दम पर दुनिया में पहचान मिली है उनके मन पर क्या गुजरेगी । जब वे ऐसा देखेंगे कि जो उनको नहीं देखना चाहिए था । हमारे देश में जितना सम्मान और श्रद्धा भाव साधु महात्माओं को देलता है शायद ही किसी अन्य को मिलता होगा ।

देश-विदेश में बहुत कम समय में प्रसिद्धी पाये स्वामी रामदेव जी जो न तो साधु है न महात्मा सन्त । लेकिन श्रेणी उनकी सर्वश्रेष्ठ कही जा सकती है जिसके पीछे मेरा तर्क भी सर्व विदित है कि जो किसी को रास्ता बताये, रास्ता चाहे स्वस्थ रहने का ही हो क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है । वह गुरू की श्रेणी में आ सकता है । उनको शिक्षक भी कहा जा सकता है जो हमको कुछ सिखाता है चाहे स्वस्थ रहना ही सही ।

वैदिक काल में भारत वर्ष में योग गुरू पतंजलि द्वारा ही योग का सूत्रपात किया गया था । जिन्होने अष्ठांगिक योग के नियम बताये थे । यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारण, समाधि उसी योग को आगे बढ़ाकर स्वामी रामदेव जी ने देश-विदेश में भारत वर्ष को एक नई पहचान योग गुरू के रूप में दिलायी जिसके लिए उनका समस्त भारतवासी आभारी हैं कि योग को इस भारत देश की चार दीवारी से निकालकर अमेरिका, इंग्लैण्ड तक की यात्रा करा दी । वे सच्चे स्वामी के रूप में अपने कर्त्तव्य का पालन कर रहे हैं ।

परन्तु एक कहावत है कि खुदा जब हुस्न देता है तो नजाकत आ ही जाती है । ऐसा ही कुछ स्वामी जी के साथ होने जा रहा है और इस वाक्या की शुरूआत जब से हुई जब स्वामी जी के मन में अपने लाखों, करोड़ो भक्तों को देखकर लगा कि क्यों न इनका सही इस्तेमाल किया जाये और इसके लिए स्वामी जी ने पूरा होमवर्क किया ।

आंकड़े जुटाये, सरकार की कमियाँ खोजी और पत्रकार वार्ता कर अपनी महत्वाकांक्षा जग जाहिर कर दी कि अब स्वामी जी आगामी लोक सभा चुनावों में अपने उम्मीदवार उतार कर व्यवस्था परिवर्तन का दीप जलायेगे जिसकी शुरूआत भी स्वामी जी ने कैम्प लगाकर शुरू कर दी है ।

अब स्वामी जी न तो किसी पहचान के मोहताज हैं और न ही धन की कमी है अब तो बस यह देखना बाकी है कि स्वामी जी अपने मिशन में कितना कामयाब होते हैं । अगर स्वामी जी इस देश की व्यवस्था परिवर्तन करने में कामयाब हुए तो यह इस देश के लिए दूसरी स्वतन्त्रता प्राप्ति होगी । जिसके लिए स्वामी जी धन्यवाद के पात्र होगें । अब ये तो भविष्य के गर्भ में ही है कि कितनी कामयाबी मिलती है ।

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