पावलव का अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत (pavlov theory of classical conditioning in hindi)

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pavlov theory of classical conditioning in hindi

पावलव का प्रयोग

अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत का शैक्षिक महत्व(educational implications of pavlov’s classical conditioning theory of learning in hindi), अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत की आलोचना, 1. पावलव का सिद्धांत क्या है, अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धांत क्या है.

उ. रूसी शरीर शास्त्री आई.पी. पावलव (I.P Pavlov) ने 1904 ई. में अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत (classical conditioning theory) दिया था। अनुकूलित अनुक्रिया का अर्थ है अस्वाभाविक उत्तेजना के प्रति स्वाभाविक क्रिया का उत्पन्न होना। वास्तव में अनुबंधन का सिद्धांत शरीर विज्ञान का सिद्धांत है तथा इस अनुबंधन क्रिया में उद्दीपन और प्रतिक्रिया में संबंध द्वारा सीखने पर बल दिया जाता है। उद्दीपन और अनुक्रिया के बीच सहचार्य स्थापित करना ही अनुबंधन है।

2. पावलव का पूरा नाम क्या है

उ. पावलव का पूरा नाम इवान पेट्रोविच पावलव है।

3. पावलव की पुस्तक का नाम

1. Conditioned Reflexes 2. Psychopathology and Psychiatry 3. Conditioned Reflexes: An Investigation of the Physiological Activity of the Cerebral Cortex Ivan Pavlov 4. The Work of the Digestive Glands

4. पावलव के कुत्ते का नाम क्या था।

उत्तर: पावलव ने वास्तव में अपने प्रयोगों के दौरान 40 से अधिक कुत्तों के साथ काम किया था। जिनमें से कुछ कुत्तों के नाम थे बिरका, क्रासाविट्ज़, बेक, मिल्काह, इकार, जॉय।

5. पावलव के कौन कौन से सिद्धांत हैं?

१. अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत (classical conditioning theory)

२. शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांंत

३. संबंध प्रतिक्रिया का सिद्धांत

6. शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत किसका है?

उ. शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत पावलव का है। अनुबंधित उद्दीपक क्या है?

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अधिगम का शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत

Hamid ali

अधिगम का शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत (Classical Conditioning Theory of Learning)

इस सिद्धांत के प्रवर्तक पावलोव है। अनुबंधन (Conditioning) में किसी भी वस्तु अथवा परिस्थिति को उद्दीपन के रूप में काम में लिया जाता है। इस उद्दीपन के कारण अधिगमकर्ता (Learner) अनुक्रिया प्रकट करता है।

उद्दीपन (Stimulus) तथा अनुक्रिया (Response) के बीच सम्बन्ध ही अनुबंधन (Conditioning) है।

पावलोव का प्रयोग (Expriment of Pavlov)

मनोवैज्ञानिक पावलोव ने कुत्ते की लार ग्रंथि पर प्रयोग किया।

पावलोव ने कुत्ते को भोजन देने से पहले घंटी बजायी तथा यह प्रक्रिया कई दिनों तक दोहराई जैसे ही खाना देने के पहले घंटी बजाई जाती थी कुत्ते के मुँह में लार आने लगती ।

अधिगम का शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत pavlov Classical Conditioning Theory of Learning hindi

उन्होंने पाया कि कुत्ते को भोजन न देकर केवल घंटी ही बजाए जाए, तो भी कुत्ते के मुँह से लार टपकने लगती है।

कुत्ते की घंटी के प्रति इस प्रतिक्रिया को पावलोव ने सहज-संबंध क्रिया की संज्ञा दी।

निष्कर्ष (Conclusion)

पावलोव का प्रयोग के प्रयोग में भोजन स्वाभाविक उद्दीपक (Natural stimulant ) है, जिसे अनअनुबन्धित उद्दीपन (Unconditioned Stimulus,UCS) कहा जाता है।

भोजन को देखने पर कुत्ते के मुँह में लार आना एक स्वाभाविक अनुक्रिया (Natural  Response) है, जिसे अनअनुबन्धित अनुक्रिया (Unconditioned Response ,UCR) कहा गया है।

भोजन देने से पहले घंटी बजाना अनुबंधित उद्दीपक (Conditioned Stimulus ,CS) कहा है

अगर कुत्ते को भोजन न देकर केवल घंटी (अनुबंधित उद्दीपक CS) ही बजाई जाए तो लार आना अनुबंधित अथवा अस्वाभाविक अनुक्रिया (Conditioned Response, CS)  है।

इस सिद्धांत को इस प्रकार समझ सकते है, की जैसे अध्यापक के आने (स्वाभाविक उद्दीपक) पर कक्षा में विद्यार्थी चुप हो जाते (स्वाभाविक अनुक्रिया) है। लेकिन यदि अध्यापक कक्षा में नहीं हो और मॉनिटर कक्षा में ये बोल के गुरुजी आ रहे है। तो विद्यार्थी चुप हो जाते है जो अनुबंधित अथवा अस्वाभाविक अनुक्रिया (Conditioned Response, CS)  है।

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शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत के अन्य नाम (Other Names of Classical Conditioning)

  • अनुबंधन सिद्धांत (Conditioning theory)
  • अधिगम का प्राचीनतम सिद्धांत (The oldest theory of learning)
  • अनुबंधन-अनुक्रिया सिद्धांत (Condition-response theory)
  • संबंध-प्रतिक्रिया सिद्धांत (Conditioned- reflex theory
  • प्रतिबद्ध-अनुक्रिया सिद्धांत (Committed-response theory)

लैड़ल के अनुसार

संबंध-प्रतिक्रिया (Conditioned reflex) में किसी काम के लिए स्वाभाविक उद्दीपक (Natural Response) के स्थान पर एक प्रभावहीन उद्दीपक (Ineffective Response) काम में लिया जाता है। जो स्वाभाविक उद्दीपक से सबंधित होने के कारण प्रभावी (effective) हो जाता है।

जॉन बी. वॉटसन द्वारा शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत का मानव पर प्रयोग (Experiment of Classical Conditioning Theory on Human by John B. Watson)

जॉन बी. वॉटसन ने पावलोव के प्रयोग को मनुष्य पर लागू किया 1921 ई. में वाटसन ने एक 11 महीने के शिशु अल्बर्ट का अध्ययन किया। वाटसन में अल्बर्ट को सफेद चूहे से डरने के लिए सफेद चूहे को तेज तथा डरी हुई आवाज के साथ फैंकते।

पहले  अल्बर्ट के सामने चूहा आने पर डर का कोई संकेत नहीं दिखाता, लेकिन जब चूहे को तेज तथा डरी हुई आवाज (UCS) छोड़ा, तो अल्बर्ट चूहों से डरने लगा।

इस प्रयोग से यह कहा जा सकता है कि तेज आवाज (UCS) प्रेरित भय (UCR) के कारण बच्चे में चूहे से भय (CR) उत्त्पन्न हुआ।

शिक्षा में अनुबंधन सिद्धांत के अनुप्रयोग (Uses of Classical Conditioning Theory in Education)

  • यह सिद्धांत सीखने की स्वाभाविक विधि पर आधारित है।
  • अनुबंधन सिद्धांत पशु-पक्षियों में प्रशिक्षण में सहायता करता है।
  • इस सिद्धांत के उपयोग से मंदबुद्धि बालकों में अधिगम को बढ़ाया जा सकता है।
  • यह सिद्धांत बालकों में अच्छी आदतों के निर्माण में तथा बुरी आदत को छुड़ाने में सहायता करता है।
  • शिक्षण में शिक्षण सहायक सामग्री का उपयोग इसी सिद्धांत के आधार पर किया जाता है।

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पॉवलव का शास्त्रीय अनुबन्धन का सिद्धान्त | Pavlov’s Theory of Classical Conditioning in Hindi

पॉवलव का शास्त्रीय अनुबन्धन का सिद्धान्त | Pavlov's Theory of Classical Conditioning in Hindi

पॉवलव का शास्त्रीय अनुबन्धन का सिद्धान्त (Pavlov’s Theory of Classical Conditioning)

शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धान्त का प्रतिपादन रूसी वैज्ञानिक एवं शिक्षाशास्त्री इवान पी. पॉवलव ने 1904 में किया था। इस सिद्धान्त को अनुकूलित अनुक्रिया, सम्बन्ध प्रतिक्रिया, प्रतिस्थापन अधिगम अथवा अनुबंध अधिगम के नाम से भी जाना जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार प्राचीन व्यवहार में परिवर्तन उद्दीपक की उत्तेजना से प्रभावित होता है। अनुकूलित – अनुक्रिया का अभिप्राय अस्वाभाविक उत्तेजना के प्रति स्वाभाविक क्रिया के उत्पन्न होने से है। बर्नाडे के अनुसार, अनुकूलित – अनुक्रिया उत्तेजना (stimulus) को बार-बार दोहराने के फलस्वरूप व्यवहार का स्वचालन है। इसमें उत्तेजना का सम्बन्ध पहले किसी और अनुक्रिया (response) के साथ होता है किन्तु अंत में अनुक्रिया स्वयं उत्तेजना का स्वरूप धारण कर लेती है। पॉवलव ने बताया कि उत्तेजना और प्रतिक्रिया के मध्य सम्बन्ध स्थापित होना ही अधिगम है। व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक इस सिद्धान्त का समर्थन करते है।

पॉवलव ने अनुबंधित अनुक्रिया (Conditioned Response) के अपने सिद्धान्त को समझाने के लिए कुत्ते के ऊपर प्रयोग किया। उन्होंने कुत्ते की लार ग्रन्थि का ऑपरेशन किया और कुत्ते के मुँह से लार एकत्रित करने के लिए एक नली के माध्यम से उसे कांच के जार से जोड़ दिया। इस प्रयोग की प्रक्रिया को निम्न तीन चरणों में समझा जा सकता है-

1) सर्वप्रथम पॉवलव ने कुत्ते को भोजन (प्राकृतिक या स्वाभाविक उद्दीपक) दिया जिसे देखकर उसके मुँह में लार आ गई। उन्होंने बताया कि भूखे कुत्ते के मुंह में भोजन देखकर लार आ जाना स्वाभाविक क्रिया है। स्वाभाविक क्रिया को सहज क्रिया भी कहा जाता है। यह क्रिया उद्दीपक के उपस्थित होने पर होती है। भोजन एक प्राकृतिक उद्दीपक है जिसको देखकर लार टपकना एक स्वाभाविक क्रिया है।

2 ) दूसरे चरण में पॉवलव ने कुत्ते को घंटी (कृत्रिम उद्दीपक) बजाकर भोजन दिया। भोजन को देखकर कुत्ते के मुंह में फिर लार का स्राव हुआ। इस प्रक्रिया में भोजन को देखकर लार आने की स्वाभाविक क्रिया को उन्होनें घंटी बजाने की एक कृत्रिम उद्दीपक से संबंधित किया जिसका परिणाम स्वाभाविक प्रतिक्रिया के रूप में प्राप्त हुआ ।

3) पॉवलव ने कुत्ते पर अपने प्रयोग को बार-बार दोहराया। तीसरे चरण में उन्होंने कुत्ते को भोजन न देकर केवल घंटी बजाई। इस बार घंटी की आवाज सुनते ही कुत्ते के मुँह में लार आ गई। इस प्रकार अस्वाभाविक या कृत्रिम उद्दीपक से भी स्वभाविक प्रतिक्रिया (लार का टपकना) प्राप्त हुई।

उपर्युक्त प्रयोग में अस्वाभाविक या कृत्रिम उद्दीपक से स्वभाविक प्रतिक्रिया (लार का टपकना) ही अनुकूलित – अनुक्रिया सिद्धान्त है। जैसे- मिठाई की दुकान को देखकर बच्चों के मुंह से लार टपकना । उपरोक्त प्रयोग में जो क्रिया (लार का टपकना) पहले स्वाभाविक उद्दीपक से हो रही थी वो अब प्रयोग को बार- बार दोहराने से अस्वाभाविक या कृत्रिम उद्दीपक से होने लग गई। इस प्रकार कहा जा सकता है कि दो उद्दीपकों को एक साथ प्रस्तुत करने पर कालान्तर में नवीन उददीपक प्रभावशाली हो जाता है। व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक रेनर और वाटसन ने 11 माह के अल्बर्ट नामक बच्चे पर भी ऐसा ही एक प्रयोग किया। यह बालक जंगली जानवरों से भयभीत नहीं होता था लेकिन जब एक दिन जानवर के साथ भयानक तेज ध्वनि (प्राकृतिक उद्दीपक) निकाली गई तो वो डर गया। इसके बाद वो हमेशा जानवरों (कृत्रिम उद्दीपक) को देखकर ही डर (अनुबंध प्रतिक्रिया) जाता था। इस पूरी प्रक्रिया में तेज ध्वनि अनुबंधविहीन उत्तेजक (unconditioned stimulus) है और जानवर अनुक्रिया उद्दीपन (conditioned stimulus) है। इसके सम्बन्ध से बालक का घबराना स्वतः प्रेरित अनुक्रिया (conditioned response) है।

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पावलोव का शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत | pavlove theory of classical conditioning in hindi.

आईo पीo पावलोव (I. P. Pavlov) एक रूसी शारीरिक-वैज्ञानिक थे, जिन्होंने पाचन क्रिया के देहिकी का विशेष रूप से अध्ययन करना प्रारंभ किया और उनका यह अध्ययन इतना महत्वपूर्ण एवं लोकप्रिय हुआ कि 1904 में इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार भी दिया गया.

पावलोव ने अपने सीखने के सिद्धांत का आधार अनुबंधन को माना है. अनुबंधन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा उद्दीपन (Stimulus) तथा अनुक्रिया (Response) के बीच एक साहचर्य (Association) स्थापित होता है. पावलोव के सीखने के इस अनुबंधन सिद्धांत को क्लासिकी अनुबंधन सिद्धांत या प्रतिवादी अनुबंधन सिद्धांत कहा जाता है.

पावलव के सिद्धांत के अनुसार, कोई स्वाभाविक उद्दीपन, सीखने वाले प्राणी के सामने उपस्थित किया जाता है तो वह उसके प्रति एक स्वभाविक अनुक्रिया करता है. जैसे गर्म बर्तन को छूते ही हाथ खींच लेना तथा भूखा होने पर भोजन देखकर मुंह में लार का आना कुछ ऐसी ही अन्य क्रियाओं के उदाहरण हैं.

पावलोव का कुत्ते पर प्रयोग (Pavlov's experiment on the Dog)

पावलोव ने स्वभाविक उद्दीपन को दर्शाने के लिए कुत्ते पर एक प्रयोग किया जिसमें एक भूखे कुत्ते को एक ध्वनि-नियंत्रित प्रयोगशाला में एक विशेष उपकरण के सहारे खड़ा कर दिया गया. कुत्ते के सामने भोजन लाया जाता था और चूँकि कुत्ता भूखा था इसलिए भोजन देख कर उसके मुंह में लार आ जाता था. कुछ प्रयासों के बाद भोजन देने के पहले एक घंटी बजाई जाती थी. यह प्रक्रिया कुछ दिनों तक दोहराई गई तथा देखा गया कि बिना भोजन आए ही मात्र घंटी की आवाज पर कुत्ते के मुंह से लार निकलना शुरू हो गया. पावलोव के अनुसार कुत्ते ने घंटी की आवाज पर लार के स्राव करने की अनुक्रिया को सीख लिया था. उनके अनुसार घंटी की आवाज तथा लार के स्राव के बीच एक नया साहचर्य कायम हुआ जिसे अनुबंधन की संज्ञा दी गई.

pavlov experiment in hindi

पावलोव ने अनुबंधित उद्दीपक घंटी की ध्वनि के साथ स्वभाविक उद्दीपक भोजन से स्राव में वृद्धि होने को पुनर्बलन  (Reinforcement) कहा. सीखने की इस क्रिया को पावलोव ने अनुबंधित सहज क्रिया कहा. आज के मनोवैज्ञानिक इसे शास्त्रीय अनुबंधन कहते हैं. इस सिद्धांत के अनुसार, सीखने के लिए उद्दीपक का होना आवश्यक नहीं होता, अनुबंधित उद्दीपक के प्रति भी अनुक्रिया होती है और अपने सही अर्थों में अनुबंधित उद्दीपक के प्रति जो अनुक्रिया होती है, वही सीखना अर्थात अधिगम है. मनोवैज्ञानिक इस प्रकार सीखने को अनुबंधित सीखना कहते हैं.

शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत की विशेषताएं (Features of Classical Contraction Theory)

  • अनुबंधन सिद्धांत सम्बद्ध सहजक्रिया पर आधारित है. छोटे बच्चे प्रायः इसी रूप में सीखते हैं.
  • यह सिद्धांत इस बात पर बल देता है कि यदि स्वभाविक उद्दीपक के साथ अनुबंधित उद्दीपक का प्रयोग किया जाए तो स्वभाविक अनुक्रिया में वृद्धि होती है.
  • यह सिद्धांत अनुबंधन और पुनर्बलन पर बल देता है. पुनर्बलन से सीखने की गति बढ़ती है और अनुबंधन से सीखना स्थाई होता है.
  • इस सिद्धांत के अनुसार सीखने के लिए अनुबंधित उद्दीपक और अनुबंधित अनुक्रिया में संबंध होना आवश्यक है.
  • शास्त्रीय अनुबंधन की प्रविधि द्वारा बच्चों की बुरी आदतों के स्थान पर अच्छी आदतें प्रतिस्थापित की जा सकती हैं.

शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत की कमियां (Drawbacks of Classical Contraction Theory)

  • यह सिद्धांत पशुओं पर प्रयोग करके प्रतिपादित किया गया है और बालकों पर प्रयोग करके इसकी पुष्टि की गई है, अतः यह परिपक्व (Matured) मनुष्यों की सीखने की प्रक्रिया पर पूर्ण रुप से लागू नहीं होता.
  • इस सिद्धांत में मनुष्य को एक जैविक मशीन माना गया है और उसके सीखने की प्रक्रिया को एक यांत्रिक प्रक्रिया माना गया है इसलिए यह मनुष्य के चिंतन एवं तर्कपूर्ण सीखने की प्रक्रिया की व्याख्या नहीं करता.
  • अनुबंधित अनुक्रिया द्वारा सीखना स्थाई नहीं होता.
  • अनुबंधन की प्रक्रिया कुछ विशेष परिस्थितियों में ही होती है, जबकि सीखने की प्रक्रिया स्वभाविक रूप से सदैव चलती रहती है.
  • यह सिद्धांत मनुष्य के सीखने की प्रक्रिया की सही व्याख्या नहीं करता.

शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत की शिक्षा में उपयोगिता (Utility in Teaching Classical contract Theory)

  • यह सिद्धांत सीखने में क्रिया अनुबंधन और पुनर्बलन पर बल देता है. इससे सीखने की प्रक्रिया प्रभावशाली होती है.
  • यह सिद्धांत विषयों के शिक्षण में शिक्षण साधनों के प्रयोग और अनुशासन स्थापित करने में पुरस्कार एवं दंड के प्रयोग पर बल देता है.
  • इस विधि से ऐसे विषयों को सरलता से पढ़ाया जा सकता है जिनमें बुद्धि, चिंतन एवं तर्क की आवश्यकता नहीं होती.
  • शास्त्रीय अनुबंधन द्वारा बच्चों की बुरी आदतों को अच्छी आदतों में प्रतिस्थापित किया जा सकता है एवं भय आदि मानसिक रोगों को दूर किया जा सकता है.
  • शास्त्रीय अनुबंधन द्वारा बच्चों का सामाजिकरण सरलता से किया जा सकता है.
  • थोर्नडाइक का उद्दीपक-अनुक्रिया सिद्धांत
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पावलव का अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत (Pavlov Theory Of 'Learning') क्या है यूपी टेट और सीटेट के नोट्स

पावलव का सिद्धांत (pavlov theory of learning), पावलव के सिद्धांतो के नाम।.

'पावलव का सिद्धांत' 'Pavlov Theory Of Learning'

पवलाव के सिद्धांत की व्याख्या ।(Explanation of Pavlav's principle.)

pavlov experiment in hindi

पावलव ने अपना प्रयोग कुत्ते पर किया।(Pavlov did his experiment on a dog.)

प्रयोग करने के पश्चात पावलव किस नतीजे पर पहुंचे।.

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वाटसन एवं पावलव का सिद्धांत | शास्त्रीय अनुबन्धन का सिद्धान्त | Watson’s and Pavlov’s Theory of Classical Conditioning in Hindi

कुत्ते, चूहे, बिल्ली आदि प्राणियों पर किए गए अपने विभिन्न प्रयोगों द्वारा वाटसन और पैवलोव जैसे मनोवैज्ञानिकों ने अधिगम प्रक्रिया को समझने के लिए अनुबन्धित या प्रतिबद्ध अनुक्रिया नामक सिद्धान्त (Conditioning Response Theory) को जन्म दिया। इस सिद्धांत को साधारण रूप में अनुबन्धन द्वारा सीखना (Learning by Conditioning) कहा जाता है। अनुबन्धन का प्राचीनतम रूप होने के कारण इसे शास्त्रीय विशेषण भी प्रदान किया जाता है। और फलस्वरूप इस प्रकार के अधिगम को शास्त्रीय अनुबंधन का नाम भी दिया जाता है। अनुबंधन क्या है और यह सिद्धान्त क्या कहता है, यह समझने के लिए इन मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए जाने वाले कुछ प्रयोगों को समझना अधिक उचित होगा। ( वाटसन एवं पावलव का सिद्धांत )

पैवलोव द्वारा किया गया एक प्रयोग ( Experiment by Pavlov)

पैवलोव द्वारा किए गए एक प्रयोग में एक कुत्ते को भूखा रख कर उसे प्रयोग करने वाली मेंज के साथ बाध दिया गया। इस कुसे की लार ग्रन्थियों का आपरेशन कर दिया गया ताकि उसकी लार की बूंदों को परखनली में एकत्रित करके लार की मात्रा भी मापी जा सके। स्वतः चालित यांत्रिक उपकरणों की सहायता से कुत्ते को भोजन देने का व्यवस्था की। प्रयोग का प्रारम्भ इस प्रकार किया गया – घंटी बजने के साथ ही कुत्ते के सामने भोजन प्रस्तुत किया गया। भोजन को देख कर कुत्ते के मुँह में लार आना स्वाभाविक ही था। इस लार को कांच की नली द्वारा परख नलिका में एकत्रित किया गया। इस प्रयोग को कई बार दोहराया गया और एकत्रित लार की मात्रा का माप लिया जाता रहा।

पैवलोव द्वारा किया गया एक प्रयोग।

प्रयोग के आखिरी चरण में भोजन न देकर केवल घंटी बजाने की व्यवस्था की गई। इस अवस्था में भी कुत्ते के मुँह से लार टपकी जिसकी मात्रा का माप किया गया इस प्रयोग के द्वारा यह देखने को मिला कि भोजन सामग्री जैसे प्राकृतिक उद्दीपन (Natural Stimulus) के अभाव में भी घंटी बजने जैसे कृत्रिम उद्दीपन (Artificial stimulus) के प्रभाव स्वरूप कुत्ते ने लार टपकाने जैसी स्वाभाविक अनुक्रिया (Natural Response) व्यक्त की।

पैवलोव के प्रयोग का चित्रात्मक प्रस्तुतीकरण।

इस प्रयोग में कुत्ते ने यह सीखा कि जब घटी बजती है तब खाना मिलता है सीखने के इसी प्रभाव के कारण घंटी बजने पर उनके मुँह से लार निकलनी प्रारम्भ हो जाती है। पैवलोव ने इस प्रकार के सीखने को अनुबन्धन द्वारा सीखना (Learning by conditioning) कहा। इस प्रकार के सीखने में किसी प्राकृतिक उद्दीपन (Natural Stimulus) जैसे भोजन, पानी, लैंगिक संसर्ग (Sexual contact) आदि के साथ एक कृत्रिम उद्दीपन (Artificial Stimulus) जैसे घंटी की ध्वनि, कोई रंगीन प्रकाश, आदि प्रस्तुत किया जाता है। कुछ समय बाद जब प्राकृतिक उद्दीपन को हटा लिया जाता है तो यह देखा जाता है कि कृत्रिम उद्दीपन से भी वही अनुक्रिया होती है जो प्राकृतिक उद्दीपन से होती है। इस प्रकार अनुक्रिया (Response) कृत्रिम उद्दीपन के साथ अनुबंधित (Conditioning) हो जाती है।

वाटसन द्वारा किया गया प्रयोग ( Experiment Performed by Watson)

वाटसन नामक मनोवैज्ञानिक ने स्वयं अपने 1। माह के पुत्र अलबर्ट के साथ एक प्रयोग किया उसे खेलने के लिए एक खरगोश दिया बच्चे ने इसे बहुत पसन्द किया विशेषकर उसके नरम-नरम बालों पर हाथ फेरना उसे बहुत अच्छा लगा। इसी प्रयोग के दौरान कुछ समय पश्चात् बच्चे ने जैसे ही खरगोश को छुआ, एक तरह की डरावनी ध्वनि पैदा की गई और इस क्रिया को जब-जब वह खरगोश को छूता था बार-बार दोहराया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि डरावनी आवाज़ के न किए जाने पर भी बच्चे को खरगोश को देखने से ही डर लगने लगा। इस तरह भय की अनुक्रिया खरगोश (कृत्रिम उद्दीपन) के साथ अनुबंधित हो गई और इस अनुबंधन के फलस्वरूप उसने खरगोश से डरना सीख लिया। प्रयोग को आगे बढ़ाने पर देखा गया कि बच्चा खरगोश से ही नहीं बल्कि ऐसी सभी चीजों जैसे (रुई के गोले, समूर का कोट आदि) से डरने लगा जिनमें खरगोश के बाल जैसी नरमी और कोमलता हो।

ऐसे प्रयोगों के आधार पर वाटसन और पैवलोव आदि मनोवैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि सभी प्रकार की सीखने की क्रियाओं को अनुबन्धन प्रक्रिया (Process of conditioning) के माध्यम से अच्छी तरह समझा जा सकता है।

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UNIT-5 : अधिगम सिद्धांत: पावलोव का शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत

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  • UNIT-9 : बुद्धि (भाग- 1)
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शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत में उद्दीपन अनुक्रिया के मध्य सहचार्य स्थापित होता है। अनुबंधन दो प्रकार का होता है- 1. शास्त्रीय अनुबंधन अथवा अनुकूलित अनुक्रिया 2. क्रिया प्रसूत या नैमित्तिक अनुबंधन अनुबंधन वह प्रक्रिया है जिसमें एक प्रभावहीन उद्दीपन इतना प्रभावशाली हो जाता है कि वह गुप्त अनुक्रिया को प्रकट कर देता है। शास्त्रीय अनुबंधन को समझने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि मनुष्य में अन्य क्रियाएं होती है, कुछ जन्मजात होती है  जैसे सांस लेना, पाचन आदि तथा कुछ मनोवैज्ञानिक लिए होती है जैसे पलक झपकना, लार आना आदि इन्हें अनुबंधन क्रियाऐं भी कहते हैं। शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत आईवी पाउलोव द्वारा सन् 1904  में प्रतिपादित किया गया इस सिद्धांत के अनुसार अस्वाभाविक उद्दीपन के प्रति स्वभाविक उद्दीपन के समान होने वाली अनुक्रिया  शास्त्रीय अनुबंधन है अर्थात उद्दीपन और अनुक्रिया के बीच सहचार्य स्थापित होना ही अनुबंधन है।

प्रयोग- पावलोव ने एक कुत्ते के ऊपर प्रयोग किया उसने कुत्ते की लार ग्रंथि का ऑपरेशन किया और  उस लार ग्रंथि को एक ट्यूब द्वारा कांच की बोतल से जोड़ दिया जिसमें लार को एकत्रित किया जा सकता था। इस प्रयोग में कुत्ते को खाना दिया जाता था तो खाना देखते ही कुत्ते के मुंह में लार आना प्रारंभ हो जाती थी। खाना देने के पूर्व घंटी बजाई जाती थी और घंटी के साथ ही खाना दिया जाता थाष इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया गया तत्पश्चात एक बार केवल घंटी बजाई गई किंतु भोजन नहीं दिया इसके पश्चात भी कुत्ते के मुंह में लार आनी प्रारंभ हो गई। इस संपूर्ण प्रक्रिया को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है 1. भोजन स्वभाविक उद्दीपक(UCS)—————– लार स्वभाविक अनुक्रिया(UCS) 2. घंटी की आवाज  (अस्वभाविक उद्दीपन) एवं  भोजन (स्वभाविक उद्दीपन)————– लार  स्वभाविक अनुक्रिया(UCR) एवं भोजन(CS+UCS) 3. घंटी की आवाज अस्वभाविक उद्दीपन(CS)—————————– लार आना, अस्वभाविक अनुक्रिया(CR)

UCS- Unconditioned stimulus         CS- conditioned stimulus UCR-  unconditioned response       CR- conditioned response

इस प्रयोग के अनुसार यदि स्वभाविक उद्दीपक के साथ  अस्वभाविक उद्दीपक दिया जाए और इसकी पुनरावृति अनेक बार की जाए तो  भविष्य में स्वभाविक उद्दीपक के हटाए जाने पर भी अस्वभाविक उद्दीपक से ही वही अनुक्रिया होती है जो स्वभाविक उद्दीपक के साथ होती है।

शास्त्रीय अनुबंधन को प्रभावित करने वाले कारक- प्रेरणा- प्रेरणा जितनी अधिक होगी प्राणी उतनी ही शीघ्रता से अनुबंधन स्थापित करेगा। समय के सन्निकटता- स्वभाविक एवं  अस्वभाविक उद्दीपकों के बीच अधिक समय अंतराल नहीं होना चाहिए यदि अधिक समय अंतराल होगा तो अनुबंध स्थापित नहीं होगा। पुनरावृति-  अनुबंध स्थापित होने के लिए  स्वभाविक एवं अस्वभाविक उद्दीपकों  की लगातार पुनरावृति होनी चाहिए। नियंत्रित वातावरण- शास्त्रीय अनुबंध द्वारा सीखने के लिए वातावरण को नियंत्रित करना आवश्यक है। 

शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत के अनुप्रयोग-

अभिवृत्ति निर्माण में सहायक- शास्त्रीय अनुबंधन के द्वारा अधिगम से शिक्षक एवं स्कूल आदि के प्रति अच्छी अभिवृत्ति ओं के विकास में सहायता मिलती है। बुरी आदतों को तोड़ना- यह नए केवल अच्छे आंतों की निर्माण अभी तू बुरी आदतों को तोड़ने में भी सहायक है। आदत निर्माण-के पावलोव के अनुसार विभिन्न प्रकार की आदतें जो कि प्रशिक्षण शिक्षा एवं अनुशासन पर आधारित है शास्त्रीय अनुबंधन की ही श्रृंखला मात्र है। पशुओं का प्रशिक्षण- सर्कस हेतु इसी विधि से पशुओं को प्रशिक्षित किया जाता है।

  शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत की आलोचना 1. इस सिद्धांत में उद्दीपन को पुनः दोहराया  जाता है जिससे संबद्धता बनी रहे यदि उद्दीपनों को लगातार प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो उसमें ये  उद्दीपन प्रभावहीन हो जाते हैं। 2. यह सिद्धांत मनुष्य को मशीन मानता है जो कि सत्य नहीं है कोई भी मनुष्य मशीन नहीं है उसमें बुद्धि विवेक चिंता न तर्क करने की क्षमता है।

पॉपुलर टेस्ट सीरीज

Prateek Shivalik

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#Free Educational Notes

Ivan-Pavlov-Notes-in-Hindi

Ivan Pavlov Notes in Hindi PDF Download (Complete)

Ivan pavlov notes in hindi, (इवान पावलोव).

आज हम आपको Ivan Pavlov Notes in Hindi (इवान पावलोव) अनुकूलित अनुक्रिया, शास्त्रीय अनुबंधन, अनुकूलित अनुक्रिया, इवान पावलोव क्लासिकल कंडीशनिंग, के नोट्स देने जा रहे है जिनको पढ़कर आपके ज्ञान में वृद्धि होगी और यह नोट्स आपकी आगामी परीक्षा को पास करने में मदद करेंगे | ऐसे और नोट्स फ्री में पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट पर रेगुलर आते रहे, हम नोट्स अपडेट करते रहते है | तो चलिए जानते है, इवान पावलोव   के बारे में विस्तार से |

Notes – In the corner of this page you will see a translate button, with the help of which you can change the language of these notes. within a second and you can also download these Notes.

Introduction :

  • काले रंग की वस्तु देखकर बच्चे का डरना |
  • मिठाई देखकर मुह में पानी आना स्वाभाविक है।

एक लड़का बाजार के रास्ते से होकर स्कूल जा रहा है। रास्ते में हलवाई की दुकान दिखी, दुकान पर रंग-बिरंगी मिठाइयां सजी देखकर बच्चे के मुंह से लार टपकने लगती है। धीरे-धीरे यह एक स्वाभाविक क्रिया बन जाती है, वहीं बच्चे के लिए घर में या स्कूल के आसपास किसी हलवाई की मिठाई बेचने वाली की आवाज मात्र से उसके मन में मिठाई खाने की लालसा पैदा हो जाती है, इसलिए, जब अस्वाभाविक उत्तेजना के प्रति स्वाभाविक क्रिया होती है तो यही अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत कहलाती है।

उद्दीपन (Stimulus) अनुक्रिया (Response) के बीच सम्बन्ध ही अनुबंधन (Conditioning) कहलाता है।

” अनुबंधन वह प्रक्रिया है। जिसमें एक उत्तेजना वस्तु या परिस्थिति के द्वारा एक अनुक्रिया होती है। इसके अतिरिक्त यह अनुक्रिया एक प्राकृतिक या सामान्य अनुक्रिया है। “

Ivan-Pavlov-Notes-in-Hindi

पवलव का कुत्ते पर प्रयोग

(pavlov’s dogs experiment).

पावलोव ने अपना प्रयोग अपने पालतू कुत्ते पर किया। उन्होंने इसके लिए एक (Soundproof) ध्वनि रहित कमरा तैयार किया और अपने कुत्ते को भूखा रखा और प्रयोगकर्ता के साथ बांध दिया। चेंबर में एक खिड़की भी बनाई गई थी जिससे कुत्ता सब कुछ देख सकता था। पावलोव ने कुत्ते की लार नली को काटकर इस तरह से योजना बनाई कि कुत्ते के मुंह से निकलने वाली लार एक कांच की नली/ ट्यूब में एकत्रित हो जाए।

  • सबसे पहले, पावलोव ने कुत्ते के सामने केवल मांस का एक टुकड़ा रखा। कुत्ते मांस से प्यार करते हैं इसलिए कुत्ते के साथ यह स्वाभाविक है कि मांस की गंध और स्वाद के कारण कुत्ते को देखते ही लार टपकने लगती है और इसे कांच की नली में इकट्ठा या जमा कर लेते हैं। उस ट्यूब में जो भी लार इकट्ठी हुई थी, उसे नापा गया।
  • दूसरी बार जब मांस कुत्ते के सामने रखा गया तो साथ-साथ घंटी भी बजाई गई और कुत्ते के व्यवहार को देखने के बाद पता चला कि इस बार कुत्ते ने समान रूप से लार टपकाना शुरू कर दिया। पावलोव ने इस प्रयोग को कई बार दोहराया और हर बार कुत्ते को मांस दिए जाने पर एक घंटी बजाई जाती थी।
  • एक बार ऐसा हुआ कि कुत्ते ने अपने सामने मांस रखे बिना बस घंटी बजाई और उसकी प्रतिक्रिया देखी गई। निरीक्षण करने पर पता चला कि कुत्ता अभी भी पहले की तरह लार टपका रहा है।
  • इस प्रयोग से पावलोव ने निष्कर्ष निकाला कि घंटी की आवाज से कुत्ता बेसुध/प्रतिबंध हो गया। इस प्रयोग में, मांस प्राकृतिक प्रतिक्रिया है और घंटी स्वाभाविक प्रतिक्रिया (natural reaction) है और लार प्रतिक्रिया है। इस प्रयोग से एक और घटना सामने आती है जो कुत्ते के सामने दो तरह की उत्तेजना पैदा करती है। यह घंटी बजना और भोजन परोसना है।
  • अंत में, जब कुत्ते को केवल घंटी दी गई और भोजन नहीं दिया गया, तब भी पाया गया कि कुत्ते ने भोजन के साथ ही प्रतिक्रिया की।

अनुकूलित अनुक्रिया (Classical Conditioning) का सिद्धांत संबंध सहज क्रिया पर आधारित है। सीखना कुछ हद तक इस पर निर्भर करता है, इसलिए लैडेल ने कहा कि वातानुकूलित प्रतिक्रिया में कार्य के लिए प्राकृतिक उत्तेजना के बजाय एक प्रभावी उत्तेजना होती है, जो प्राकृतिक उत्तेजना से जुड़े होने पर प्रभावी हो जाती है।

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Table: Ivan Pavlov’s Dog Experiment in Classical Conditioning

Experiment Components Description
Neutral Stimulus (NS) प्रारंभिक उत्तेजना (Initial stimulus), जैसे कि मेट्रोनोम या घंटी की आवाज, जो स्वाभाविक रूप से कुत्तों से लार की प्रतिक्रिया नहीं देती थी।
Unconditioned Stimulus (UCS) Stimulus, आमतौर पर भोजन, जो कुत्तों से स्वाभाविक रूप से एक लार (Salivary) प्रतिक्रिया (unconditioned response, UCR) को ट्रिगर करता है।
Conditioning Trials दो उत्तेजनाओं के बीच संबंध स्थापित करने के लिए बार-बार बिना शर्त प्रोत्साहन (unconditioned stimulus) (UCS) की प्रस्तुति के साथ तटस्थ उत्तेजना (neutral stimulus) (NS) की जोड़ी बनाना।
Conditioned Stimulus (CS) एक बार (Association) संगठन स्थापित हो जाने के बाद, तटस्थ उत्तेजना (neutral stimulus) (NS) बिना शर्त प्रतिक्रिया (unconditioned response) (UCR) के समान प्रतिक्रिया प्राप्त करने में सक्षम एक वातानुकूलित प्रोत्साहन (conditioned stimulus) (CS) बन जाती है।
Conditioned Response (CR) सीखी हुई प्रतिक्रिया जो तब होती है जब वातानुकूलित उत्तेजना (conditioned stimulus) (CS) प्रस्तुत की जाती है, इस मामले में, अकेले मेट्रोनोम या घंटी की आवाज के लिए कुत्तों से लार की प्रतिक्रिया।

पावलोव के कुत्ते के प्रयोग में, मेट्रोनोम या घंटी की तटस्थ उत्तेजना (NS) शुरू में लार प्रतिक्रिया (UCR) से संबंधित नहीं थी। भोजन के बिना शर्त उत्तेजना (UCS) के साथ बार-बार जोड़े के माध्यम से, कुत्तों ने एनएस को यूसीएस के साथ जोड़ना शुरू कर दिया। आखिरकार, NS एक वातानुकूलित प्रोत्साहन (CS) बन गया, जो UCS की अनुपस्थिति में भी लार की एक वातानुकूलित प्रतिक्रिया (CR) प्राप्त कर सकता है। इस प्रयोग ने शास्त्रीय कंडीशनिंग की प्रक्रिया का प्रदर्शन किया, जहां एक तटस्थ उत्तेजना और जैविक रूप से महत्वपूर्ण उत्तेजना के बीच एक जुड़ाव बनता है, जिससे एक सीखी हुई प्रतिक्रिया होती है।

Ivan-Pavlov-Notes-in-Hindi

इवान पावलोव का शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धान्त

(ivan pavlov’s classical conditioning theory).

पावलोव का शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत, जिसे पावलोवियन कंडीशनिंग या प्रतिवादी कंडीशनिंग के रूप में भी जाना जाता है, एक मनोवैज्ञानिक सिद्धांत है जो बताता है कि उत्तेजनाओं और प्रतिक्रियाओं के बीच संबंध कैसे बनते हैं। इसे 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में रूसी फिजियोलॉजिस्ट इवान पावलोव द्वारा विकसित किया गया था।

पावलोव ने मुख्य रूप से कुत्तों पर अपने प्रयोग किए, हालांकि शास्त्रीय कंडीशनिंग के सिद्धांत मनुष्यों सहित विभिन्न जीवों पर लागू होते हैं। उन्होंने देखा कि कुत्तों को स्वाभाविक रूप से भोजन के साथ पेश किए जाने पर लार निकलती है, जिसे उन्होंने बिना शर्त प्रतिक्रिया (UR) के रूप में संदर्भित किया। पावलोव ने यह भी देखा कि कुत्तों ने न केवल भोजन प्रस्तुत करने पर लार टपकाना शुरू किया बल्कि जब उन्होंने प्रयोगकर्ता के कदमों की आहट सुनी जो आम तौर पर भोजन लाते थे। वातानुकूलित प्रतिक्रिया (CR) के रूप में जाना जाने वाला यह प्रतिक्रिया, पहले तटस्थ उत्तेजना, कदमों की आवाज से शुरू हुई थी, जो भोजन की प्रस्तुति से जुड़ी हुई थी।

शास्त्रीय कंडीशनिंग की प्रक्रिया में कई प्रमुख तत्व शामिल हैं:

  • Unconditioned Stimulus (US): यह एक ऐसा प्रोत्साहन है जो बिना किसी पूर्व सीख के स्वाभाविक रूप से एक विशिष्ट प्रतिक्रिया प्राप्त करता है। पावलोव के प्रयोगों में, भोजन बिना शर्त उत्तेजना के रूप में कार्य करता था क्योंकि यह स्वाभाविक रूप से लार का कारण बनता था। उदाहरण: ओवन से निकलने वाली ताज़ी बेक की हुई कुकीज़ की महक। कुकीज़ की सुगंध स्वाभाविक रूप से भूख की भावना पैदा करती है, जो बिना शर्त प्रतिक्रिया (UR) है।
  • Unconditioned Response (UR): यह प्राकृतिक, प्रतिवर्त प्रतिक्रिया है जो बिना शर्त उत्तेजना की उपस्थिति में होती है। पावलोव के प्रयोगों में, बिना शर्त प्रतिक्रिया भोजन के साथ पेश किए जाने पर कुत्तों की लार थी। उदाहरण: ताजी पकी हुई कुकीज़ को सूंघने पर भूख का अहसास होना। यह प्रतिक्रिया स्वचालित रूप से होती है और इसके लिए किसी पूर्व कंडीशनिंग की आवश्यकता नहीं होती है।
  • Conditioned Stimulus (CS): यह एक तटस्थ उद्दीपक है, जो बिना शर्त उत्तेजना के साथ बार-बार युग्मन के माध्यम से, बिना शर्त प्रतिक्रिया के समान प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए आता है। पावलोव के प्रयोगों में, वातानुकूलित उद्दीपन पदचाप की ध्वनि थी। उदाहरण: भोजन के ठीक पहले घंटी बजने की आवाज । प्रारंभ में, घंटी की आवाज एक तटस्थ उत्तेजना होती है और भूख से संबंधित प्रतिक्रिया उत्पन्न नहीं करती है।
  • Conditioned Response (CR): यह सीखी हुई प्रतिक्रिया है जो बिना शर्त उत्तेजना के साथ जोड़े जाने के बाद वातानुकूलित उत्तेजना से प्राप्त होती है। पावलोव के प्रयोगों में, वातानुकूलित प्रतिक्रिया कुत्तों की लार थी जब उन्होंने पदचाप की आवाज सुनी। उदाहरण: आखिरकार, भोजन की प्रस्तुति (US) के साथ घंटी बजने (CS) की बार-बार जोड़ी के माध्यम से, एक वातानुकूलित प्रतिक्रिया बनती है। वास्तविक भोजन के अभाव में भी व्यक्ति को घंटी की आवाज सुनकर भूख लगने लगती है।

बिना शर्त उत्तेजना (भोजन) के साथ वातानुकूलित उत्तेजना (कदमों की आवाज़) की बार-बार जोड़ी के माध्यम से, कुत्तों ने दो उत्तेजनाओं को जोड़ना सीखा, जिससे वातानुकूलित उत्तेजना के जवाब में एक वातानुकूलित प्रतिक्रिया (लार) का विकास हुआ। इस प्रक्रिया को अधिग्रहण के रूप में जाना जाता है।

उदाहरण: पावलोव के क्लासिकल कंडीशनिंग सिद्धांत का मनोविज्ञान के क्षेत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। यह अंतर्दृष्टि प्रदान करता है कि व्यवहार कैसे सीखे जाते हैं और उत्तेजनाओं और प्रतिक्रियाओं के बीच संबंध कैसे बनते हैं। शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत व्यवहार को संशोधित करने और प्रभावित करने के लिए व्यवहार चिकित्सा, विज्ञापन और शिक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रूप से लागू होते हैं।

US – Unconditioned Stimulus CS – Conditioned Stimulus UR – Unconditioned Response CR – Conditioned Response

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शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत की विशेषताएं

(features of classical conditioning theory).

  • साहचर्य सजगता के आधार पर (Based on Associative Reflexes): शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत साहचर्य प्रतिवर्त की अवधारणा में निहित है। यह सुझाव देता है कि व्यक्ति, विशेष रूप से छोटे बच्चे, उत्तेजनाओं और प्रतिक्रियाओं के बीच संघों के निर्माण के माध्यम से सीखते हैं। जब एक तटस्थ उत्तेजना एक प्राकृतिक (बिना शर्त) उत्तेजना से जुड़ी हो जाती है, तो यह एक सशर्त प्रतिक्रिया प्राप्त कर सकती है।
  • प्राकृतिक प्रतिक्रिया में वृद्धि (Enhancement of Natural Response): शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत के अनुसार, जब एक सशर्त उत्तेजना (शुरुआत में तटस्थ) बार-बार एक प्राकृतिक उत्तेजना के साथ जोड़ी जाती है जो एक विशिष्ट प्रतिक्रिया पैदा करती है, तो प्राकृतिक प्रतिक्रिया बढ़ जाती है। कंडीशनिंग की प्रक्रिया के माध्यम से, वातानुकूलित उत्तेजना प्राकृतिक उत्तेजना के समान प्रतिक्रिया उत्पन्न करने की क्षमता प्राप्त करती है।
  • कंडीशनिंग और सुदृढीकरण पर जोर (Emphasis on Conditioning and Reinforcement): शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत सीखने की प्रक्रिया में कंडीशनिंग और सुदृढीकरण दोनों के महत्व पर प्रकाश डालता है। कंडीशनिंग एक प्राकृतिक उत्तेजना के साथ एक वातानुकूलित उत्तेजना को जोड़ने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है, जो एक वातानुकूलित प्रतिक्रिया के अधिग्रहण की ओर जाता है। दूसरी ओर, सुदृढीकरण वांछित व्यवहार को मजबूत करने या बनाए रखने के लिए सकारात्मक या नकारात्मक परिणामों के उपयोग को संदर्भित करता है। सुदृढीकरण सीखने को गति देता है, जबकि कंडीशनिंग स्थायी संघों को स्थापित करने में मदद करती है।
  • संबंध का महत्व (Importance of Relationship): सिद्धांत प्रभावी सीखने के लिए वातानुकूलित उत्तेजना और वातानुकूलित प्रतिक्रिया के बीच संबंध की आवश्यकता पर बल देता है। एक मजबूत संघ स्थापित करने के लिए वातानुकूलित उत्तेजना को सार्थक रूप से वांछित प्रतिक्रिया से जोड़ा जाना चाहिए। उत्तेजनाओं और प्रतिक्रियाओं के बीच संबंध की ताकत और गुणवत्ता शास्त्रीय कंडीशनिंग की प्रभावशीलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • अच्छी आदतों का प्रतिस्थापन (Substitution of Good Habits): शास्त्रीय कंडीशनिंग व्यक्तियों, विशेष रूप से बच्चों में बुरी आदतों को अच्छी आदतों के साथ बदलने या बदलने के लिए एक विधि प्रदान करती है। व्यवस्थित रूप से एक वांछित व्यवहार को एक सशर्त उत्तेजना के साथ जोड़कर और सुदृढीकरण प्रदान करके, सिद्धांत बताता है कि अवांछनीय व्यवहार को धीरे-धीरे अधिक वांछनीय द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है।

ये विशेषताएं शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत के प्रमुख पहलुओं को रेखांकित करती हैं, जिसमें साहचर्य प्रतिवर्त पर ध्यान केंद्रित करना, प्राकृतिक प्रतिक्रियाओं में वृद्धि, कंडीशनिंग और सुदृढीकरण की भूमिका, उत्तेजनाओं और प्रतिक्रियाओं के बीच संबंधों का महत्व, और आदत संशोधन और व्यवहार परिवर्तन के लिए इसकी क्षमता शामिल है।

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Other names for Pavlov’s Theory (Classical Conditioning)

(पावलोव के सिद्धांत के अन्य नाम).

  • शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत (Principle of classical contracting)
  • अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धांत  (Principle of optimized response)
  • प्राचीन अनुबंधन /प्रतिक्रिया का सिद्धांत (Ancient contract/theory of reaction)
  • संबद्ध प्रत्यावर्तन का सिद्धांत  (Principle of repeated repatriation)
  • अनुबंधित अनुप्रिया प्रतिक्रिया का सिद्धांत  (Theory of contracted response)
  • अनुबंधित प्रतिवर्त का सिद्धांत (Theory of contracted reflex)
  • पुरातन अनुबंधन का सिद्धांत  (Principal Of archaic contracting )
  • सहज क्रिया का सिद्धांत  (Theory of spontaneous action)
  • Type S. अनुबन्धन का सिद्धान्त (Type S. Theory of contract)
  • सम्बद्ध प्रतिक्रिया का सिद्धान्त (associated response theory)
  • प्रतिस्थापन का सिद्धान्त (substitution theory)

शिक्षण में शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत की उपयोगिता

(utility of classical conditioning theory in teaching).

  • कंडीशनिंग और सुदृढीकरण पर जोर (Emphasis on Conditioning and Reinforcement): शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत सीखने की प्रक्रिया में कंडीशनिंग और सुदृढीकरण के महत्व पर प्रकाश डालता है। शिक्षण में, यह वांछित व्यवहार या प्रतिक्रिया को व्यवस्थित उत्तेजना के साथ व्यवस्थित रूप से जोड़कर और सुदृढीकरण प्रदान करके लागू किया जा सकता है। यह दृष्टिकोण वांछित व्यवहारों और संघों को मजबूत करके सीखने की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाने में मदद करता है।
  • शिक्षण सहायक सामग्री और पुरस्कार/दंड का उपयोग (Use of Teaching Aids and Rewards/Punishments): शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत सीखने की सुविधा और अनुशासन स्थापित करने के लिए शिक्षण सहायक सामग्री और पुरस्कार/दंड के उपयोग का सुझाव देता है। शिक्षक उत्तेजनाओं और वांछित प्रतिक्रियाओं के बीच जुड़ाव बनाने के लिए दृश्य सहायक सामग्री, जोड़तोड़, प्रौद्योगिकी और अन्य शिक्षण सामग्री का उपयोग कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, पुरस्कार और दंड का उपयोग सकारात्मक व्यवहारों को सुदृढ़ कर सकता है और अवांछनीय व्यवहारों को हतोत्साहित कर सकता है, अनुशासन और कक्षा प्रबंधन को बढ़ावा दे सकता है।
  • गैर-बौद्धिक विषयों को पढ़ाना (Teaching Non-Intellectual Subjects): शास्त्रीय कंडीशनिंग उन विषयों को पढ़ाने में विशेष रूप से उपयोगी हो सकती है जो बुद्धि, सोच और तर्क पर बहुत अधिक निर्भर नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, उत्तेजनाओं और प्रतिक्रियाओं के बीच बार-बार जुड़ाव के माध्यम से तथ्यों, शब्दावली और बुनियादी कौशलों को रटने की सुविधा दी जा सकती है। यह दृष्टिकोण बचपन की शिक्षा में या मूलभूत अवधारणाओं को पढ़ाते समय फायदेमंद हो सकता है।
  • व्यवहार संशोधन और आदत निर्माण (Behavior Modification and Habit Formation): शिक्षण में शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण अनुप्रयोग अवांछित व्यवहारों या आदतों को अधिक वांछनीय लोगों के साथ बदलने की क्षमता है। बार-बार जुड़ाव और सुदृढीकरण के माध्यम से, शिक्षक छात्रों को बुरी आदतों से उबरने और नए सकारात्मक व्यवहार विकसित करने में मदद कर सकते हैं। शास्त्रीय कंडीशनिंग तकनीकों को कुछ मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों को संबोधित करने के लिए भी नियोजित किया जा सकता है, जैसे छात्रों में भय की प्रतिक्रिया या चिंता को कम करना।
  • समाजीकरण और कक्षा की गतिशीलता (Socialization and Classroom Dynamics): शास्त्रीय कंडीशनिंग कक्षा के वातावरण में बच्चों के समाजीकरण में योगदान कर सकती है। उपयुक्त सामाजिक व्यवहारों के साथ सकारात्मक अनुभवों, अंतःक्रियाओं और पुरस्कारों को जोड़कर, छात्र सामाजिक-सामाजिक व्यवहारों में संलग्न होना, सामाजिक कौशल विकसित करना और साथियों और शिक्षकों के साथ सकारात्मक संबंधों को बढ़ावा देना सीख सकते हैं।

यह नोट करना महत्वपूर्ण है कि शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत शिक्षण में एक उपयोगी उपकरण हो सकता है, इसे अन्य शैक्षणिक दृष्टिकोणों के साथ पूरक होना चाहिए और शिक्षार्थियों के व्यक्तिगत अंतर और संज्ञानात्मक पहलुओं पर विचार करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, नैतिक विचारों और एक छात्र-केंद्रित दृष्टिकोण को शैक्षिक सेटिंग्स में शास्त्रीय कंडीशनिंग तकनीकों के अनुप्रयोग का मार्गदर्शन करना चाहिए।

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Pavlov’s Educational Implications

(पावलोव के शैक्षणिक प्रभाव).

इवान पावलोव द्वारा विकसित पावलोव का शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत, बताता है कि उत्तेजना और प्रतिक्रियाओं के बीच संबंध कैसे बनते हैं। जबकि प्रारंभ में पशु व्यवहार के संदर्भ में अध्ययन किया गया था, इस सिद्धांत के शिक्षण और सीखने की प्रक्रियाओं के लिए कई शैक्षिक निहितार्थ हैं। निम्नलिखित शीर्षक इन निहितार्थों का विश्लेषण प्रदान करते हैं:

  • सक्रिय सीखना (Active Learning): पावलोव के सिद्धांत के अनुसार, सीखना तब होता है जब कोई जीव सक्रिय रूप से जुड़ा होता है। एक शैक्षिक सेटिंग में, इसका तात्पर्य है कि सक्रिय शिक्षण रणनीतियों की तुलना में निष्क्रिय शिक्षण विधियां कम प्रभावी हो सकती हैं। छात्रों को सक्रिय रूप से भाग लेने, बातचीत करने और अपने ज्ञान को लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसमें व्यवहारिक प्रयोग, समूह चर्चा, समस्या समाधान गतिविधियाँ और अवधारणाओं के व्यावहारिक अनुप्रयोग शामिल हो सकते हैं।
  • व्यवहार संशोधन (Behavior Modification): पावलोव के सिद्धांत से पता चलता है कि व्यवहार को संशोधित करने के लिए वातानुकूलित प्रतिक्रियाओं का उपयोग किया जा सकता है। एक शैक्षिक संदर्भ में, इस सिद्धांत का उपयोग अवांछित आदतों, आचरण और व्यवहार को बदलने और सकारात्मक लोगों को सुदृढ़ करने के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी छात्र की बारी से बाहर बोलने की आदत है, तो शिक्षक उचित व्यवहार को प्रोत्साहित करने और व्यवधानों को हतोत्साहित करने के लिए पुरस्कार और दंड की व्यवस्था लागू कर सकता है।
  • भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों का इलाज (Treating Emotional and Mental Health Issues): भावनात्मक रूप से अस्थिर या मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चों के इलाज के लिए शास्त्रीय कंडीशनिंग लागू की जा सकती है। एक तटस्थ उत्तेजना को सकारात्मक प्रतिक्रिया के साथ जोड़कर, जैसे कि आराम या आश्वासन प्रदान करना, शिक्षक इन बच्चों के लिए सकारात्मक भावनात्मक जुड़ाव बनाने में मदद कर सकते हैं। समय के साथ, यह कंडीशनिंग प्रक्रिया भावनात्मक स्थिरता और समग्र कल्याण में योगदान दे सकती है।
  • फोबिया का इलाज (Treating Phobias): फोबिया से संबंधित मानसिक रोगी क्लासिकल कंडीशनिंग तकनीक से लाभान्वित हो सकते हैं। एक नियंत्रित और सहायक वातावरण में आशंकित उत्तेजना के लिए व्यक्तियों को धीरे-धीरे उजागर करके, और इसे सकारात्मक अनुभवों या विश्राम तकनीकों के साथ जोड़कर, फ़ोबिक प्रतिक्रिया को कम करना या समाप्त करना संभव है। उदाहरण के लिए, सार्वजनिक बोलने के डर वाले छात्र को धीरे-धीरे छोटे समूहों के सामने बोलने के लिए उजागर किया जा सकता है और उनके प्रयासों के लिए पुरस्कृत किया जा सकता है, जिससे समय के साथ चिंता कम हो जाती है।
  • संबंधों पर जोर (Emphasis on Relationships): पावलोव का सिद्धांत उत्तेजनाओं और प्रतिक्रियाओं के बीच संबंधों के महत्व पर प्रकाश डालता है। शिक्षा में, इसका तात्पर्य है कि शिक्षकों को अपने छात्रों के साथ सकारात्मक और सहायक संबंध स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। तालमेल और विश्वास का निर्माण एक सुरक्षित और अनुकूल वातावरण बनाकर सीखने के परिणामों को बढ़ा सकता है जहाँ छात्र प्रश्न पूछने, गलतियाँ करने और सीखने की प्रक्रिया में शामिल होने में सहज महसूस करते हैं।
  • दोहराव और अभ्यास (Repetition and Practice): शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत सीखने में दोहराव के महत्व पर जोर देता है। शिक्षकों को सीखने को सुदृढ़ करने और प्रतिधारण बढ़ाने के लिए अभ्यास और पुनरावृत्ति के अवसरों को शामिल करना चाहिए। पर्याप्त अभ्यास अभ्यास, समीक्षा सत्र और पुनरीक्षण गतिविधियाँ प्रदान करके, शिक्षक छात्रों को उनके ज्ञान और कौशल को समेकित करने में मदद कर सकते हैं।
  • सीखने की रणनीतियों का विकास (Development of Learning Strategies): पावलोव के सिद्धांत के अनुसार, सुसंगत और गुणवत्तापूर्ण शिक्षण के माध्यम से अनुकूलित प्रतिक्रियाओं को विकसित किया जा सकता है। शिक्षकों को अच्छी तरह से संरचित और प्रभावी निर्देश देने, विभिन्न शिक्षण विधियों का उपयोग करने और विभिन्न शिक्षण शैलियों को अपनाने पर ध्यान देना चाहिए। स्पष्ट स्पष्टीकरण, प्रासंगिक उदाहरण और आकर्षक गतिविधियाँ प्रदान करके, शिक्षक छात्रों में प्रभावी शिक्षण रणनीतियों के विकास की सुविधा प्रदान कर सकते हैं।
  • पर्यावरण निर्माण में शिक्षक की भूमिका (Teacher’s Role in Environment Creation): अनुकूली प्रतिक्रिया में, शिक्षक सीखने के माहौल को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्हें नियम स्थापित करने चाहिए, स्पष्ट अपेक्षाएँ निर्धारित करनी चाहिए, और तत्काल प्रतिक्रिया, पुरस्कार और दंड प्रदान करना चाहिए। एक सहायक और सुसंगत वातावरण बनाकर, शिक्षक अनुकूलित प्रतिक्रियाओं के संपादन की सुविधा प्रदान कर सकते हैं और वांछित व्यवहारों को सुदृढ़ कर सकते हैं।
  • अच्छे दृष्टिकोण को विकसित करना (Cultivating Good Attitudes): पावलोव के सिद्धांत से पता चलता है कि कंडीशनिंग के माध्यम से एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित किया जा सकता है। शिक्षक सकारात्मक रोल मॉडल, आदर्श और मूल्य प्रस्तुत कर सकते हैं ताकि छात्रों को उसके अनुरूप ढलने और प्रतिक्रिया देने के लिए प्रेरित किया जा सके। सकारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देकर, शिक्षक छात्रों को चुनौतियों से उबरने, लचीलापन विकसित करने और समस्याओं का समाधान खोजने में मदद कर सकते हैं।
  • पावलोव का शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत शिक्षकों के लिए बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। सक्रिय सीखने, व्यवहार संशोधन, और पुनरावृत्ति, रिश्तों और पर्यावरण निर्माण के महत्व को समझकर, शिक्षक प्रभावी सीखने के अनुभव बना सकते हैं और छात्रों के विकास और विकास का समर्थन कर सकते हैं। इन शैक्षिक निहितार्थों को लागू करने से उन्नत शिक्षण विधियों, बेहतर छात्र जुड़ाव और सकारात्मक सीखने के परिणामों में योगदान मिल सकता है।
  • निष्कर्ष के आधार पर कहा जा सकता है कि Pavlov द्वारा दिए गए शास्त्रीय अनुबंधनीय सिद्धान्त से मनुष्य मे बहुत सारे बदलाव देखने को मिल सकते हैं। अगर प्राकृतिक उद्दीपन और कृत्तिम उद्दीपन दोनों एक साथ प्रक्रिया करे तो एक समय पर कृत्रिम उद्दीपन प्राकृतिक उद्दीपन की जगह ले लेता है। लेकिन इनका सिद्धान्त केवल बच्चों और जानवरों पर ही लागू होता है।

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Factors Affecting Classical Conditioning

(शास्त्रीय अनुबंधन को प्रभावित करने वाले कारक).

शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत (Pavlov Theory) के लिए कुछ शर्तें आवश्यक हैं, जिनके आधार पर सीखने की प्रक्रिया प्रभावी होती है, जो इस प्रकार हैं:

  • प्रेरणा (motivation): शास्त्रीय कंडीशनिंग में प्रेरणा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। प्रेरणा का स्तर कंडीशनिंग की ताकत और गति को निर्धारित करता है। जब एक जीव प्रेरित होता है, तो उत्तेजनाओं और प्रतिक्रियाओं के बीच संबंध बनाने की अधिक संभावना होती है। उदाहरण के लिए, पावलोव के प्रयोग में, कुत्ते की भूख ने उसे घंटी की आवाज को भोजन की प्रस्तुति के साथ जोड़ने के लिए प्रेरित किया। प्रेरणा के बिना, कंडीशनिंग प्रक्रिया उतनी प्रभावी नहीं हो सकती है। उदाहरण: एक ऐसे छात्र की कल्पना करें जिसे वीडियो गेम खेलना पसंद है। वे पुरस्कार अर्जित करने और खेल में नए स्तरों को अनलॉक करने के लिए अत्यधिक प्रेरित हैं। इस मामले में, जब भी छात्र किसी कार्य को सफलतापूर्वक पूरा करता है या अच्छे व्यवहार का प्रदर्शन करता है, तो एक शिक्षक एक विशिष्ट टोन या जिंगल जैसे ध्वनि क्यू को शामिल करके शास्त्रीय कंडीशनिंग का उपयोग कर सकता है। समय के साथ, छात्र ध्वनि क्यू को उपलब्धि और प्रेरणा की भावना के साथ जोड़ देगा, जिससे कक्षा में जुड़ाव और सकारात्मक व्यवहार बढ़ेगा।
  • समय की निकटता/समय का अंतराल (The proximity of Time): शास्त्रीय अनुबंधन होने के लिए वातानुकूलित उद्दीपक (CS) और बिना शर्त उद्दीपन (US) का समय महत्वपूर्ण है। प्रभावी सीखने के लिए सीएस को तुरंत पहले या साथ ही अमेरिका के साथ प्रस्तुत किया जाना चाहिए। यदि दो उत्तेजनाओं के बीच एक महत्वपूर्ण समय अंतराल है, तो संघ का गठन नहीं हो सकता है, और कंडीशनिंग कम सफल हो सकती है। समय की निकटता उत्तेजनाओं के बीच जुड़ाव को और अधिक मजबूती से स्थापित करने की अनुमति देती है। उदाहरण: मान लीजिए कि एक बच्चा आइसक्रीम खाने का आनंद लेता है और जब भी वह अपने पड़ोस में एक आइसक्रीम ट्रक को देखता है तो उत्तेजित हो जाता है। इस परिदृश्य में, आइसक्रीम ट्रक (सशर्त उत्तेजना) की दृष्टि से बच्चे की प्रत्याशा और उत्तेजना वातानुकूलित प्रतिक्रियाएं होती हैं। प्रभावी कंडीशनिंग के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि ट्रक को देखने के तुरंत बाद बच्चे को आइसक्रीम (बिना शर्त प्रोत्साहन) मिले। अगर ट्रक को देखने और आइसक्रीम प्राप्त करने के बीच काफी देरी होती है, तो संबंध कमजोर हो सकता है या बिल्कुल भी स्थापित नहीं हो सकता है।
  • दोहराव/पुनरावृति (Repetition): शास्त्रीय कंडीशनिंग में दोहराव एक महत्वपूर्ण कारक है। जितनी बार सीएस और यूएस को एक साथ जोड़ा जाता है, एसोसिएशन उतना ही मजबूत होता जाता है। बार-बार जोड़ियों के माध्यम से, सीएस प्रस्तुत किए जाने पर जीव यूएस का अनुमान लगाना सीखता है। यह दोहराव वातानुकूलित प्रतिक्रिया को ठोस बनाने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, पावलोव के प्रयोग में, भोजन की प्रस्तुति (यूएस) के साथ जोड़ी गई घंटी (सीएस) की लगातार पुनरावृत्ति ने कुत्ते को लार के साथ घंटी को जोड़ दिया। उदाहरण: एक ऐसे व्यक्ति पर विचार करें जिसे सार्वजनिक रूप से बोलने से डर लगता है। शास्त्रीय कंडीशनिंग पर आधारित एक चिकित्सीय तकनीक व्यवस्थित असंवेदीकरण के माध्यम से, व्यक्ति धीरे-धीरे छोटे समूहों के सामने बोलने के लिए खुद को उजागर करता है। प्रारंभ में, वे चिंता और भय का अनुभव कर सकते हैं, लेकिन बार-बार जोखिम और सकारात्मक सुदृढीकरण, जैसे प्रशंसा या पुरस्कार के साथ, समय के साथ उनका डर कम हो जाता है। धीरे-धीरे बढ़ते जोखिम की पुनरावृत्ति सार्वजनिक बोलने के प्रति उनकी प्रतिक्रिया को सुधारने में मदद करती है, जिससे चिंता कम हो जाती है।
  • नियंत्रित वातावरण (Controlled Environment): प्रभावी शास्त्रीय कंडीशनिंग के लिए एक नियंत्रित वातावरण आवश्यक है। यह सुनिश्चित करता है कि जीव का ध्यान कंडीशनिंग के लिए उपयोग की जाने वाली उत्तेजनाओं पर केंद्रित रहता है। विक्षेपों और अप्रासंगिक उत्तेजनाओं को कम करके, जीव सीएस को अमेरिका के साथ अधिक स्पष्ट रूप से जोड़ सकता है। पावलोव की प्रयोगशाला में, साउंडप्रूफिंग ने अन्य ध्वनियों को खत्म करने में मदद की, जिससे कुत्ता पूरी तरह से घंटी और भोजन पर ध्यान केंद्रित कर सके। यह नियंत्रित वातावरण बेहतर सीखने और उत्तेजनाओं के बीच मजबूत जुड़ाव को बढ़ावा देता है। उदाहरण: एक कक्षा की सेटिंग में, एक शिक्षक छात्रों को एक विशिष्ट गीत को अध्ययन अवधि के दौरान शांत और केंद्रित अवस्था के साथ जोड़ना चाहता है। एक नियंत्रित वातावरण बनाने के लिए, शिक्षक यह सुनिश्चित करता है कि कक्षा शोर या अत्यधिक हलचल जैसे विकर्षणों से मुक्त हो। जब भी छात्र शांत और केंद्रित अध्ययन में संलग्न होते हैं तो वे लगातार चुने हुए गीत को बजाते हैं। एक नियंत्रित वातावरण बनाए रखने और विकर्षणों को कम करने से, छात्र गीत को एकाग्रता और शांति की स्थिति से जोड़कर एक अनुकूलित प्रतिक्रिया विकसित कर सकते हैं।

निष्कर्ष: प्रेरणा, समय की निकटता, पुनरावृत्ति, और एक नियंत्रित वातावरण प्रमुख कारक हैं जो क्लासिकल कंडीशनिंग की प्रभावशीलता को प्रभावित करते हैं। ये कारक उत्तेजनाओं और प्रतिक्रियाओं के बीच जुड़ाव बनाने में योगदान करते हैं। इन कारकों को समझना और लागू करना शास्त्रीय कंडीशनिंग की प्रक्रिया को बढ़ा सकता है और सीखने के अधिक सफल परिणामों की सुविधा प्रदान कर सकता है।

Contribution of Pavlov’s Theory in the Field of Learning

(सीखने के क्षेत्र में पावलोव के सिद्धांत का योगदान).

पावलोव के शास्त्रीय कंडीशनिंग के सिद्धांत ने सीखने के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह मानव और पशु सीखने के विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावशाली रहा है, जैसा कि नीचे बताया गया है:

  • आदत निर्माण (Habit Formation): पावलोव का सिद्धांत आदतों को समझने और आकार देने में अत्यधिक प्रासंगिक है। यह अंतर्दृष्टि प्रदान करता है कि उत्तेजनाओं और प्रतिक्रियाओं के बीच बार-बार जुड़ाव के माध्यम से आदतें कैसे बनती हैं। शिक्षक और शिक्षक इस सिद्धांत को लागू कर सकते हैं ताकि बच्चों को सकारात्मक आदतें विकसित करने में मदद मिल सके, जैसे कि समय की पाबंदी, स्वच्छता और सम्मान। उपयुक्त उत्तेजनाओं के साथ वांछित व्यवहारों को लगातार जोड़कर, शिक्षक छात्रों में इन आदतों को सुदृढ़ और स्थापित कर सकते हैं।
  • बुरी आदतों को तोड़ना (Breaking Bad Habits): शास्त्रीय कंडीशनिंग के सिद्धांत न केवल अच्छी आदतों के निर्माण पर लागू होते हैं बल्कि अवांछित आदतों को तोड़ने के लिए भी लागू होते हैं। डिकोडिशनिंग की विधि का उपयोग करके, उत्तेजनाओं और प्रतिक्रियाओं के बीच नकारात्मक जुड़ाव को कमजोर या समाप्त किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति को धूम्रपान करने की आदत है, तो अप्रिय उत्तेजनाओं या प्रतिकूल कंडीशनिंग तकनीकों के साथ धूम्रपान के संकेतों (जैसे लाइटर या धुएं की गंध) को जोड़ने से आदत को तोड़ने में मदद मिल सकती है।
  • भावनात्मक अस्थिरता और चिंता को संबोधित करना (Addressing Emotional Instability and Anxiety): भावनात्मक अस्थिरता, चिंता और कुसमायोजन को संबोधित करने के लिए मनोचिकित्सा के क्षेत्र में पावलोव के शास्त्रीय कंडीशनिंग के सिद्धांतों का उपयोग किया गया है। उत्तेजनाओं को जोड़कर जो सकारात्मक या तटस्थ उत्तेजनाओं के साथ चिंता या भावनात्मक संकट को ट्रिगर करते हैं, चिकित्सक धीरे-धीरे नकारात्मक प्रतिक्रिया को व्यवस्थित असंवेदीकरण नामक प्रक्रिया के माध्यम से कम कर सकते हैं। यह तकनीक व्यक्तियों को उनकी भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को दूर करने और अधिक अनुकूली प्रतिक्रियाओं को विकसित करने में मदद करती है।
  • मनोवृत्ति का निर्माण (Attitude Formation): शास्त्रीय कंडीशनिंग, विशेष रूप से शिक्षकों, स्कूलों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों के प्रति सीखने के दृष्टिकोण के संदर्भ में, दृष्टिकोण निर्माण में एक भूमिका निभाता है। इन संस्थाओं के साथ सकारात्मक अनुभवों और उत्तेजनाओं को जोड़कर, व्यक्ति अनुकूल दृष्टिकोण और धारणा विकसित कर सकते हैं, जो जुड़ाव, प्रेरणा और सीखने के परिणामों को बढ़ा सकते हैं।
  • पशु प्रशिक्षण (Animal Training): पावलोव के सिद्धांत को जानवरों के प्रशिक्षण में भी बड़े पैमाने पर लागू किया गया है। ट्रेनर विशिष्ट व्यवहारों को संकेतों या उत्तेजनाओं के साथ जोड़ने के लिए शास्त्रीय कंडीशनिंग तकनीकों का उपयोग करते हैं, जिससे जानवरों को जटिल कार्य और दिनचर्या करने में सक्षम बनाया जाता है। इस पद्धति का आमतौर पर मनोरंजन सेटिंग्स में उपयोग किया जाता है, जैसे कि सर्कस या जानवरों के शो, जहां जानवरों को विशिष्ट संकेतों का जवाब देने, करतब दिखाने या वांछित व्यवहार प्रदर्शित करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।

संक्षेप में, पावलोव के शास्त्रीय कंडीशनिंग के सिद्धांत का सीखने के क्षेत्र पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इसने आदत निर्माण, बुरी आदतों को तोड़ने, भावनात्मक अस्थिरता को संबोधित करने, दृष्टिकोण निर्माण और पशु प्रशिक्षण में मूल्यवान अंतर्दृष्टि और व्यावहारिक अनुप्रयोग प्रदान किए हैं। इन सिद्धांतों को समझना और उपयोग करना अधिक प्रभावी शिक्षण, व्यवहार संशोधन और सीखने के अनुभवों में योगदान कर सकता है।

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Laws of Classical Conditioning

(क्लासिकल कंडीशनिंग के नियम).

  • आदत निर्माण का नियम (Law of Habit Formation): आदत निर्माण का नियम कहता है कि शास्त्रीय कंडीशनिंग के माध्यम से, व्यक्ति नई आदतों को प्राप्त और विकसित कर सकते हैं। इसमें एक विशिष्ट उत्तेजना को एक वांछित प्रतिक्रिया के साथ बार-बार जोड़ना शामिल है, जिससे एक आदत का निर्माण होता है। उदाहरण के लिए, अलार्म घड़ी की आवाज़ को लगातार जागने और दिन की शुरुआत के साथ जोड़कर, एक व्यक्ति समय पर जागने की आदत विकसित कर सकता है।
  • उद्दीपक भेदभाव का नियम (Law of Stimulus Discrimination): उद्दीपक भेदभाव का नियम एक व्यक्ति की समान उद्दीपकों के बीच अंतर करने और उनमें से प्रत्येक के लिए अलग तरह से प्रतिक्रिया करने की क्षमता को संदर्भित करता है। कंडीशनिंग के माध्यम से, व्यक्ति विभिन्न उत्तेजनाओं के बीच भेदभाव करना सीखते हैं और विशिष्ट प्रतिक्रियाओं को विशेष उत्तेजनाओं के साथ जोड़ते हैं। उदाहरण के लिए, एक विशिष्ट घंटी टोन का जवाब देने के लिए प्रशिक्षित कुत्ता समान ध्वनियों का जवाब नहीं दे सकता है जो उत्तेजना भेदभाव का प्रदर्शन करते हुए थोड़ा अलग हैं।
  • उद्दीपन सामान्यीकरण का नियम (Law of Stimulus Generalization): उद्दीपन सामान्यीकरण का नियम उद्दीपक भेदभाव के विपरीत है। यह सुझाव देता है कि व्यक्ति उत्तेजनाओं के समान तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं जो वातानुकूलित उत्तेजना के समान हैं। जब एक अनुक्रिया जो प्रारंभ में एक उद्दीपन से सीखी गई थी, अन्य समान उद्दीपकों के लिए सामान्यीकृत की जाती है, तो इसे उद्दीपक सामान्यीकरण कहा जाता है। उदाहरण के लिए, एक बच्चा जो एक विशिष्ट कुत्ते से डरता है, समान विशेषताओं वाले अन्य कुत्तों का सामना करते समय डर प्रतिक्रिया भी प्रदर्शित कर सकता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आदत निर्माण, उद्दीपक भेदभाव, और उत्प्रेरण सामान्यीकरण के नियम पावलोव के शास्त्रीय कंडीशनिंग प्रयोगों से प्राप्त मूलभूत सिद्धांत हैं। ये कानून सीखने में शामिल प्रक्रियाओं की व्याख्या करने में मदद करते हैं और कैसे व्यक्ति अपने कंडीशनिंग अनुभवों के आधार पर विभिन्न उत्तेजनाओं का जवाब देते हैं।

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क्लासिकल अनुबंधन सिद्धांत की कमियां

(drawbacks of classical conditioning theory).

  • परिपक्व मनुष्यों के लिए सीमित प्रयोज्यता (Limited Applicability to Mature Humans): क्लासिकल कंडीशनिंग सिद्धांत की एक कमी यह है कि इसे मुख्य रूप से जानवरों पर प्रयोगों के माध्यम से विकसित किया गया था और बाद में बच्चों पर लागू किया गया था। नतीजतन, परिपक्व मनुष्यों की सीखने की प्रक्रिया में इसकी प्रत्यक्ष प्रयोज्यता सीमित है। मानव शिक्षा संज्ञानात्मक कारकों जैसे कि सोच, तर्क और अमूर्त समझ से प्रभावित होती है, जिसे केवल शास्त्रीय कंडीशनिंग द्वारा पूरी तरह से नहीं समझा जा सकता है।
  • मानव सीखने का यंत्रवत दृष्टिकोण (Mechanistic View of Human Learning): शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत मनुष्यों को जैविक मशीनों के रूप में देखता है और सीखने की प्रक्रिया को उत्तेजनाओं के लिए एक यांत्रिक प्रतिक्रिया के रूप में चित्रित करता है। यह परिप्रेक्ष्य मानव सीखने के जटिल संज्ञानात्मक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं की अनदेखी करता है, जैसे कि स्मृति की भूमिका, समस्या-समाधान और उच्च-क्रम की सोच। यह सरल सहयोगी प्रतिबिंबों से परे मानव सीखने में शामिल जटिल प्रक्रियाओं को पर्याप्त रूप से समझाने में विफल रहता है।
  • वातानुकूलित प्रतिक्रियाओं की क्षणभंगुरता (The transience of Conditioned Responses): जबकि शास्त्रीय कंडीशनिंग से वातानुकूलित प्रतिक्रियाओं का निर्माण हो सकता है, ये प्रतिक्रियाएँ स्थायी नहीं हैं। समय के साथ, यदि वातानुकूलित उद्दीपन और बिना शर्त उद्दीपन के बीच संबंध को मजबूत या बनाए नहीं रखा जाता है, तो वातानुकूलित प्रतिक्रिया कमजोर या बुझ सकती है। वातानुकूलित प्रतिक्रियाओं की यह क्षणभंगुरता सीखने के तंत्र के रूप में शास्त्रीय कंडीशनिंग की दीर्घकालिक प्रभावशीलता को सीमित करती है।
  • कंडीशनिंग परिस्थितियों का सीमित दायरा (Limited Scope of Conditioning Circumstances): क्लासिकल कंडीशनिंग विशिष्ट परिस्थितियों में होती है जहां सशर्त प्रोत्साहन लगातार बिना शर्त उत्तेजना के साथ जोड़ा जाता है। हालाँकि, मानव सीखना स्वाभाविक रूप से संदर्भों और स्थितियों की एक विस्तृत श्रृंखला में होता है। शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत कंडीशनिंग प्रयोगों की नियंत्रित स्थितियों से परे विभिन्न वास्तविक जीवन परिदृश्यों में होने वाले सहज और निरंतर सीखने के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं है।
  • मानव सीखने की अधूरी व्याख्या (Incomplete Explanation of Human Learning): जबकि शास्त्रीय कंडीशनिंग सीखने के कुछ पहलुओं में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है, यह मानव सीखने की प्रक्रिया की संपूर्णता को व्यापक रूप से स्पष्ट नहीं करती है। ध्यान, प्रेरणा, स्मृति, भाषा और सामाजिक संपर्क जैसे कारक मानव सीखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत पूरी तरह से संबोधित नहीं करता है। मानव सीखने की अधिक व्यापक समझ हासिल करने के लिए अन्य शिक्षण सिद्धांतों और दृष्टिकोणों पर विचार करना आवश्यक है।

ये कमियां मानव सीखने की जटिलताओं को पूरी तरह से पकड़ने और सीखने की प्रक्रियाओं की अधिक समग्र समझ प्राप्त करने के लिए अन्य सिद्धांतों और दृष्टिकोणों का पता लगाने की आवश्यकता में शास्त्रीय कंडीशनिंग सिद्धांत की सीमाओं को उजागर करती हैं।

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Criticism of Classical Conditioning Theory

(शास्त्रीय अनुबंधन/अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत की आलोचना).

  • मानव व्यवहार का न्यूनीकरणवादी दृष्टिकोण (Reductionistic View of Human Behavior): शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत की आलोचनाओं में से एक यह है कि यह मनुष्यों को निष्क्रिय मशीनों के रूप में मानकर मानव व्यवहार को सरल बनाता है जो केवल बाहरी उत्तेजनाओं का जवाब देते हैं। यह मानव व्यवहार को आकार देने में अनुभूति, सोच प्रक्रियाओं, इच्छा शक्ति और व्यक्तिगत एजेंसी की भूमिका की उपेक्षा करता है। मनुष्य न केवल स्वचालित प्रतिक्रियाओं से प्रेरित होते हैं बल्कि जटिल निर्णय लेने और उच्च-क्रम की सोच में भी संलग्न होते हैं।
  • सीखने का सीमित दायरा (Limited Scope of Learning): शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत मुख्य रूप से उत्तेजनाओं और प्रतिक्रियाओं के बीच संघों के माध्यम से सीखने पर केंद्रित है। आलोचकों का तर्क है कि उत्तेजना-प्रतिक्रिया संबंधों पर यह संकीर्ण ध्यान सीखने के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं की अनदेखी करता है, जैसे समस्या-समाधान, महत्वपूर्ण सोच, वैचारिक समझ और नई स्थितियों में ज्ञान को सामान्य बनाने की क्षमता। यह मानव सीखने की प्रक्रियाओं की पूरी जटिलता को पकड़ने में विफल रहता है।
  • नैतिक सरोकार (Ethical Concerns): शास्त्रीय अनुबंधन से संबंधित एक नैतिक चिंता अवांछित या जोड़ तोड़ कंडीशनिंग की संभावना है। आलोचकों का तर्क है कि व्यक्तियों, विशेष रूप से बच्चों को कंडीशनिंग के अधीन किया जा सकता है जो अवांछित व्यवहार या भावनात्मक प्रतिक्रियाओं के विकास की ओर जाता है। यह कंडीशनिंग तकनीकों के माध्यम से जानबूझकर व्यक्तियों के व्यवहार में हेरफेर करने की नैतिकता के बारे में सवाल उठाता है।
  • वयस्क शिक्षा के लिए सीमित प्रयोज्यता (Limited Applicability to Adult Learning): शास्त्रीय अनुबंधन प्रयोग मुख्य रूप से जानवरों और बच्चों पर किए जाते हैं। आलोचकों का सुझाव है कि वयस्क शिक्षा के लिए इन निष्कर्षों की प्रयोज्यता सीमित हो सकती है। वयस्कों के पास अधिक विकसित संज्ञानात्मक क्षमताएं, पूर्व ज्ञान और तर्क कौशल होते हैं जो उनकी सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। क्लासिकल कंडीशनिंग अकेले वयस्क सीखने और व्यवहार की जटिलताओं को पूरी तरह से स्पष्ट नहीं कर सकती है।
  • सीमित सामान्यता (Limited Generalizability): क्लासिकल अनुबंधन प्रयोगों के निष्कर्षों में मानव व्यवहार और सीखने के सभी पहलुओं के लिए सीमित सामान्यता हो सकती है। मानव सीखना विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है, जैसे प्रेरणा, सामाजिक संपर्क, सांस्कृतिक अंतर और संज्ञानात्मक क्षमताओं में व्यक्तिगत अंतर। क्लासिकल कंडीशनिंग सिद्धांत मानव सीखने के अनुभवों को आकार देने वाले कारकों की विविध श्रेणी के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं हो सकता है।

निष्कर्ष: जबकि शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत ने सीखने और व्यवहार के कुछ पहलुओं में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान की है, यह आलोचनाओं के बिना नहीं है। आलोचकों का तर्क है कि यह मानव व्यवहार को बहुत सरल करता है, अनुभूति और इच्छा की उपेक्षा करता है, नैतिक चिंताओं को उठाता है, और वयस्क शिक्षा के लिए सीमित प्रयोज्यता हो सकती है। इन आलोचनाओं को स्वीकार करने से सिद्धांत की सीमाओं को स्वीकार करने में मदद मिलती है और अन्य शिक्षण सिद्धांतों की खोज को बढ़ावा मिलता है जो मानव सीखने और व्यवहार की अधिक व्यापक समझ प्रदान करते हैं।

Famous Books Written by Ivan Pavlov

(इवान पावलोव द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तकें).

Book Title Description
“ “ पावलोव का मौलिक कार्य माना जाता है, यह पुस्तक वातानुकूलित सजगता पर उनके शोध और प्रयोगों की रूपरेखा प्रस्तुत करती है। पावलोव शास्त्रीय कंडीशनिंग के अपने सिद्धांत को प्रस्तुत करता है और कुत्तों और अन्य जानवरों के साथ अपने प्रयोगों का विस्तृत विवरण प्रदान करता है।
“ “ यह पुस्तक पाचन तंत्र पर पावलोव के शोध और पाचक रसों के स्राव में वातानुकूलित सजगता की भूमिका पर केंद्रित है। यह गैस्ट्रिक स्राव के तंत्र की पड़ताल करता है और पावलोव के निष्कर्षों और सिद्धांतों में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
“The Experimental Psychology and Psychopathology of Animals” इस पुस्तक में, पावलोव पशु मनोविज्ञान के क्षेत्र में तल्लीन है और जानवरों के व्यवहार का अध्ययन करने में प्रयुक्त प्रायोगिक विधियों पर चर्चा करता है। वह वातानुकूलित सजगता, सीखने की प्रक्रिया और व्यवहार पर उत्तेजनाओं के प्रभाव जैसे विषयों की पड़ताल करता है।
व्याख्यानों का यह संग्रह वातानुकूलित सजगता पर पच्चीस वर्षों के शोध के दौरान पावलोव के प्रमुख निष्कर्षों और टिप्पणियों को प्रस्तुत करता है। यह उनके काम का व्यापक अवलोकन और सीखने और व्यवहार को समझने के लिए इसके निहितार्थ प्रदान करता है।

इवान पावलोव की ये पुस्तकें वातानुकूलित सजगता, सीखने की प्रक्रियाओं और व्यवहार के अंतर्निहित शारीरिक तंत्र पर उनके महत्वपूर्ण शोध में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। मनोविज्ञान, तंत्रिका विज्ञान और पशु व्यवहार के क्षेत्रों पर उनका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, जिससे हमारी समझ को आकार मिलता है कि जीव कैसे सीखते हैं और उत्तेजनाओं का जवाब देते हैं।

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पावलॉव का अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त | पावलॉव का सिद्धान्त | Principle of Pavlav in Hindi

पावलॉव का अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त

अनुक्रम (Contents)

पावलॉव का अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त | Principle of Pavlav in Hindi – इस सिद्धान्त के प्रतिपादक रूसी वैज्ञानिक पावलॉव को माना जाता है। इसे सहज सम्बन्ध के नाम से भी जाना जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार, “जब कोई प्राणी अस्वाभाविक उत्तेजना के प्रति स्वाभाविक क्रिया करना सीख जाता है, तब इस प्रकार सीखने की प्रक्रिया को सम्बन्ध प्रत्यावर्तन द्वारा सीखना कहते हैं। उदाहरण – एक बालक 3, 4 बिल्ली के बच्चों को पकड़ता ह और बार-बार बिल्ली का बच्चा गुर्राता एवं डराता है। इसके परिणामस्वरूप बालक बिल्ली के बच्चों को देखते ही डरने लगता है। इस उदाहरण में बिल्ली के बच्चे के आने मात्र से डर जाना एक अस्वाभाविक उत्तेजना की दशा है, किन्तु बालक का डरना एक स्वाभाविक क्रिया है। अतएव ऐसी दशा में दोनों के मध्य सम्बन्ध प्रत्यावर्तन के अनुसार सहज सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।

सम्बन्ध प्रत्यावर्तन का अर्थ –

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार सम्बन्ध प्रत्यावर्तन को निम्न प्रकार परिभाषित किया जा रहा है

गिलफोर्ड के अनुसार, “जब दो उत्तेजनाएँ बार-बार एक साथ दी जाती हैं, पहले नई तथा बाद में मौलिक जो प्रभावशाली है, तो नई उत्तेजना भी प्रभावशाली बन जाती है।”

लैंडल के अनुसार, “सम्बन्ध प्रत्यावर्तन में कार्य के प्रति स्वाभाविक उत्तेजना के स्थान पर प्रभावहीन उत्तेजना होती है, जो स्वाभाविक उत्तेजना से सम्बन्धित किये जाने के कारण प्रभावपूर्ण हो जाती है।

वरनार्ड के अनुसार, “सम्बन्ध प्रत्यावर्तन उत्तेजना की पुनरावृत्ति द्वारा व्यवहार का स्वचालन है, जिसमें उत्तेजना प्रथम किसी प्रतिक्रिया के साथ होती है, परन्तु अन्त में वह स्वयं उत्तेजना बन जाती है।

पावलॉव का कुत्ते पर प्रयोग –

पावलॉव ने अपने सिद्धान्त को सही बताने के लिए कुत्ते पर अनेक प्रयोग किये। उसने भूखे कुत्ते को एक ऐसे कमरे में बन्द कर दिया जिसमें घंटी के द्वारा भोजन दिया जाता था और देखने के लिए स्क्रिन की व्यवस्था की गई थी। कुत्ते को एक पिंजड़े में बाँध कर घण्टी बजाई गई तथा तुरन्त भोजन रख दिया गया। यह प्रयोग कुछ सप्ताह तक बार-बार किया गया, जिससे कुत्ते ने घण्टी के बजने पर भोजन मिलने की क्रिया को सीख लिया इसके परिणामस्वरूप घण्टी बजने पर कुत्ते के मुँह में लार आने लगती थी। कुछ समय बाद कुत्ते के पिंजड़े में घण्टी बजाई गई लेकिन भोजन नहीं दिया गया। लेकिन पूर्व में सीखी क्रिया के कारण लार आने लगती थी। अतः मुँह से निकलने वाली लार तथा घण्टी के मध्य सम्बन्ध प्रत्यावर्तन के अनुसार घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो गया। इस सम्बन्ध को कुत्ते ने भली-भाँति सीख लिया। इस प्रयोग में मुँह में लार बहना एक ऐसी स्वाभाविक प्रतिक्रिया है जो अस्वाभाविक उत्तेजना घण्टी से सम्बन्धित हो जाती है।

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पावलाव का अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धान्त / पावलव का शास्त्रीय अनुबन्धन सिद्धान्त

दोस्तों अगर आप बीटीसी, बीएड कोर्स या फिर uptet,ctet, supertet,dssb,btet,htet या अन्य किसी राज्य की शिक्षक पात्रता परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आप जानते हैं कि इन सभी मे बाल मनोविज्ञान विषय का स्थान प्रमुख है। इसीलिए हम आपके लिए बाल मनोविज्ञान के सभी महत्वपूर्ण टॉपिक की श्रृंखला लाये हैं। जिसमें हमारी साइट istudymaster.com का आज का टॉपिक पावलाव का अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धान्त / पावलव का शास्त्रीय अनुबन्धन सिद्धान्त / Pavlov’s Classical Conditioning Theory in hindi है।

पावलाव का अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धान्त / पावलव का शास्त्रीय अनुबन्धन सिद्धान्त

अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त का प्रतिपादन रूसी मनोवैज्ञानिक आई.पी.पावलव ने 1904 में किया था। जिसके लिए इनको 1904 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। पावलव ने अपने सिद्धान्त का आधार अनुबन्धन (Conditioning ) को माना है। अनुबन्धन (Conditioning) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा उद्दीपन (Stimulus) तथा अनुक्रिया (Response) के बीच एक साहचर्य स्थापित हो जाता है। पावलव के इस अनुबन्धन सिद्धान्त को Classical Conditioning कहा जाता है। इस सिद्धान्त को स्पष्ट करते हुए विद्वानों ने लिखा है कि-स्वाभाविक उत्तेजक के प्रति स्वाभविक उत्तेजक के समान होने वाली प्रक्रिया को सम्बन्धन प्रतिक्रिया कहते हैं।

Pavlov के सिद्धान्त अनुसार उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया करना (Stimulus-Response) मानव की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। जब मूलउद्दीपक (U.C.S.) के साथ एक नवीन उद्दीपन प्रस्तुत किया जाता है तथा कुछ समय पश्चात् जब मूल उद्दीपन को हटा दिया जाता है तब नवीन उद्दीपक से भी वही अनुक्रिया होती है जो मूल उद्दीपक से होती है। इस प्रकार प्राणी की अनुक्रिया नये Stimulus के साथ अनुकूलित हो जाती है। पावलव (Pavlov) ने इसके लिए कुत्ते पर प्रयोग किया । वाटसन और रेना (Watson and Rayner) (1920) ने अल्बर्ट (Albert) नामक मानव शिशु पर प्रयोग किया और पाया कि मानव भी पशु के समान अनुबंधन (Condiationing) द्वारा सीखते हैं।

गिलफोर्ड (Guilford) की व्याख्या- “इस सिद्धान्त की सामान्य व्याख्या यह है कि जब दो उत्तेजनाएँ दी जाती रहीं, पहले नयी और बाद में मौलिक, उस समय पहली क्रिया भी प्रभावशील हो जाती है।”

पावलव के सिद्धांत के अन्य नाम

(1) शास्त्रीय अनुबन्धन का सिद्धान्त (2) सम्बद्ध प्रतिक्रिया का सिद्धान्त (3) आनुवन्धित सिद्धान्त (4) अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धान्त (5) प्रतिस्थापन का सिद्धान्त (6) टाइप एस. अनुबन्धन का सिद्धान्त

पावलव का कुत्ते पर प्रयोग

पावलव ने कुत्ते को भोजन देते समय कुछ दिन घण्टी बजाते रहे। उसके बाद उन्होंने उसे भोजन न देकर केवल घण्टी बजायी, तब भी कुत्ते के मुख से लार टपनके लगी क्योंकि कुत्ते से यह सीख लिया था कि घण्टी बजने पर उसे भोजन की प्राप्ति होती है। इस सिद्धान्त का मूल सार यह है कि जब मूल उद्दीपक के साथ एक नया उद्दीपक प्रस्तुत किया जाता है तथा कुछ समय बाद जब मूल उद्दीपक को हटा दिया जाता है तब भी नवीन उद्दीपक से भी वही अनुक्रिया होने लगता है जो मूल उद्दीपक से होती है। यह अनुक्रिया नये उद्दीपक के साथ सामंजस्य बिठा लेती है।

प्राकृतिक उद्दीपक – भोजन अप्राकृतिक उद्दीपक – घंटी की आवाज प्राकृतिक अनुक्रिया – लार आना

भोजन————————————–लार का टपकना (स्वाभाविक उत्तेजक)                  ( स्वाभाविक अनुक्रिया)

द्वितीय चरण-

घण्टी बजाना + भोजन  ————-लार का टपकना

घण्टी बजाना—————————————-लार का टपकना (परंतु भोजन नही दिया)                       (स्वाभाविकअनुक्रिया) (अस्वाभाविक उत्तेजक)                            

पावलव के अनुबन्धन सिद्धान्त की विशेषताएँ (Characteristics of Pavlov’s Conditioning Theory)

अनुकूलित अनुक्रिया का तन्त्र इस आधार पर विकसित होता है- (1) स्वाभाविक उत्तेजक (भोजन) → (USC) स्वाभाविक अनुक्रिया (लार) (UCR)

(2) अस्वाभाविक + स्वाभाविक उत्तेजक → स्वाभाविक अनुक्रिया

(3) अनुकूलित ग्रेजड अनुकूलित अनुक्रिया घटी की आवाज-(C.s)→ लार (CR) UCS-Unconditioned Stimulus CS–Conditioned Stimulus UCR-Unconditioned Response CR-Conditioned Response

सम्बद्ध प्रतिचार को प्रभावित करने वाले कारक

उद्दीपक और प्रतिचार के बीच सम्बद्धता तब स्थापित होगी, जब प्रभावशाली कारक अपना प्रभाव डालेंगे। यह कारक निम्नलिखित हैं-

1. पुनर्बलन (Reinforcement) – स्वाभाविक उद्दीपक के द्वारा जब अस्वाभाविक उद्दीपक को प्रभावशाली बनाया जाता है, तो उसे पुनर्बलन कहते हैं; जैसे- भोजन के द्वारा घण्टी को प्रभावशाली बनाया गया, ताकि स्वाभाविक प्रतिचार हो सके।

2. अभ्यास (Practice) – इस सिद्धान्त में अभ्यास का महत्त्व अत्यधिक है। यदि पावलॉव अभ्यास के द्वारा साहचर्य में स्थायित्वता न ला पाते, तो सीखना सम्भव न होता।

3. समय (Timing) – स्वाभाविक उद्दीपक और अस्वाभाविक उद्दीपक के बीच अन्तराल कम से कम होना चाहिये, ताकि सीखने वाला सही साहचर्य स्थापित कर सके।

4. शान्त वातावरण (Silent environment) – प्रयोग के समय अन्य बाधाओं का प्रभाव भी सीखने में बाधा उत्पन्न करता है। अतः वातावरण शान्त रखा जाय, ताकि स्वाभाविक उद्दीपक और अरवाभाविक उद्दीपक में साहचर्य सही प्रकार से उत्पन्न हो सके।

5. प्रेरक (A Promptor) – बलवती प्रेरक के द्वारा सीखना जल्दी होता है; जैसे-भूखा कुत्ता लार जल्दी डालता है।

6. मानसिक स्वास्थ्य (Mental health) – स्वस्थ बालक, बुद्धि की तीव्रता आदि सीखने पर अपना प्रभाव डालते हैं।

शास्त्रीय अनुबन्धन सिद्धान्त का शिक्षण में प्रयोग और महत्व

पावलव के अनुकूलित अनुक्रिया के सिद्धान्त का कक्षा शिक्षण में बहुत अधिक महत्व है। इसे निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है –

(1) स्वभाव व आदत का निर्माण – इस सिद्धांत के प्रयोग से छात्रों में अच्छी आदतों का निर्माण किया जा सकता है।

(2) भाषा का विकास – छात्रों में भाषा के विकास हेतु अनुकूलन का सिद्धान्त काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है।

(3) गणित शिक्षण में सहायक – अनुकूलित अनुक्रिया के सिद्धान्त के द्वारा छात्रों की गणित की समस्याओं का समाधान काफी सरलता से किया जा सकता है।

(4) अभिवृत्ति का विकास – बालकों के समक्ष उचित एवं आदर्श व्यवहार प्रस्तुत करके उन्हें अनुकूलित-अनुक्रिया द्वारा उसमें उचित अभिवृत्ति का निर्माण किया जा सकता है।

(5) मानसिक और संवेगात्मक अस्थिरता का उपचार – इस विधि का प्रयोग मानसिक उपचार में भी किया जाता है। इसके द्वारा छात्रों में मानसिक और संवेगात्मक स्थिरता लायी जा सकती है।

(6) सीखने में वृद्धि (Growth in learning) – इस सिद्धान्त के अनुसार बालकों में अक्षर विन्यास गुणा की शिक्षा का विकास आसानी से किया जा सकता है। शिक्षकों को चाहिये कि उद्दीपक प्रतिचार का अभ्यास ज्ञान को स्थायी बनाने हेतु करें। जैसा कि लैडेल ने लिखा है-“सम्बद्ध प्रतिचार में कार्य के प्रति स्वाभाविक उद्दीपन के बजाय एक प्रभावहीन उद्दीपन होता है, जो स्वाभाविक उद्दीपन सम्बद्ध किये जाने पर प्रभावपूर्ण हो जाता है।”

(7) अन्य बिन्दु

(i) बालकों की शिक्षा में सम्बद्धीकरण की क्रिया द्वारा अधिक लाभ उठाया जा सकता है। बाल्यावस्था में बहुत-सी क्रियाएँ किसी विशेष वस्तु से सम्बद्ध हो जाती हैं और बड़े होने पर भी वह रहती हैं, उदाहरणार्थ-यदि बालक में किसी विशेष वस्तु या व्यक्ति के प्रति किसी कारणवश अरुचि, घृणा या भय उत्पन्न हो जाता है, तो बड़े होने पर भी बालक उस प्रकार की वस्तु या व्यक्त के प्रति उसी प्रकार की प्रतिक्रिया करता है। बालकों को सदैव अच्छी बातें सिखाने के लिए सम्बद्धीकरण का प्रयोग सतर्कता से करना चाहिए।

(ii) यह विधि बुरी आदतों के निवारण, आचरण तथा व्यवहार बदलने में सहायता करती है।

(iii) इस विधि की सहायता से भय सम्बन्धी मानसिक रोगों का उपचार किया जा सकता है।

(iv) अनुशासन स्थापित करने के दण्ड एवं पुरस्कार के सिद्धान्त इसी विधि पर आधारित हैं।

(v) यह विधि बालकों के समाजीकरण में तथा वातावरण से समायोजन करने में सहायता देती है।

(vi) स्किनर महोदय ने इस विधि के महत्त्व पर इन शब्दों में प्रकाश डाला है-“सम्बद्ध सहज क्रिया एक आधारभूत सिद्धान्त है, जिस पर अधिगम निर्भर रहता है।

(vii) प्रो0 एंडरसन का विचार है कि-“अनुकूलित अनुक्रिया का सबसे बड़ा योगदान यह है कि उसमें हमें एक ऐसी बुनियादी वैज्ञानिक आधार सामग्री प्राप्त हुई है, जिससे हम अधिगम के एक सिद्धान्त का निर्माण कर सकते हैं।”

                                        निवेदन

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Pavlov’s Dogs Experiment and Pavlovian Conditioning Response

Saul McLeod, PhD

Editor-in-Chief for Simply Psychology

BSc (Hons) Psychology, MRes, PhD, University of Manchester

Saul McLeod, PhD., is a qualified psychology teacher with over 18 years of experience in further and higher education. He has been published in peer-reviewed journals, including the Journal of Clinical Psychology.

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Olivia Guy-Evans, MSc

Associate Editor for Simply Psychology

BSc (Hons) Psychology, MSc Psychology of Education

Olivia Guy-Evans is a writer and associate editor for Simply Psychology. She has previously worked in healthcare and educational sectors.

On This Page:

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Like many great scientific advances, Pavlovian conditioning (aka classical conditioning) was discovered accidentally. Ivan Petrovich Pavlov (1849–1936) was a physiologist, not a psychologist.

During the 1890s, Pavlov researched salivation in dogs in response to being fed. He inserted a small test tube into the cheek of each dog to measure saliva when the dogs were fed (with a powder made from meat).

Pavlov predicted the dogs would salivate in response to the food in front of them, but he noticed that his dogs would begin to salivate whenever they heard the footsteps of his assistant, who was bringing them the food.

When Pavlov discovered that any object or event that the dogs learned to associate with food (such as the lab assistant) would trigger the same response, he realized that he had made an important scientific discovery.

Accordingly, he devoted the rest of his career to studying this type of learning.

Pavlovian Conditioning: Theory of Learning

Pavlov’s theory of learning, known as classical conditioning, or Pavlovian conditioning, posits that behaviors can be learned through the association between different stimuli.

Classical conditioning (later developed by Watson, in 1913) involves learning to associate an unconditioned stimulus that already brings about a particular response (i.e., a reflex) with a new (conditioned) stimulus, so that the new stimulus brings about the same response.

Pavlov developed some rather unfriendly technical terms to describe this process:
  • Neutral Stimulus (NS) : A stimulus that initially does not elicit a particular response or reflex action. In other words, before any conditioning takes place, the neutral stimulus has no effect on the behavior or physiological response of interest. For example, in Pavlov’s experiment, the sound of a metronome was a neutral stimulus initially, as it did not cause the dogs to salivate.
  • Unconditioned Stimulus (UCS): This is a stimulus that naturally and automatically triggers a response without any learning needed. In Pavlov’s experiment, the food was the unconditioned stimulus as it automatically induced salivation in the dogs.
  • Conditioned Stimulus (CS): This is a previously neutral stimulus that, after being repeatedly associated with an unconditioned stimulus, comes to trigger a conditioned response. For instance, in Pavlov’s experiment, the metronome became a conditioned stimulus when the dogs learned to associate it with food.
  • Conditioned Response (CR): This is a learned response to the conditioned stimulus. It typically resembles the unconditioned response but is triggered by the conditioned stimulus instead of the unconditioned stimulus. In Pavlov’s experiment, salivating in response to the metronome was the conditioned response.
  • Unconditioned Response (UR): This is an automatic, innate reaction to an unconditioned stimulus. It does not require any learning. In Pavlov’s experiment, the dogs’ automatic salivation in response to the food is an example of an unconditioned response.

Pavlov’s Dog Experiment

Pavlov (1902) started from the idea that there are some things that a dog does not need to learn. For example, dogs don’t learn to salivate whenever they see food. This reflex is ‘hard-wired’ into the dog.

Pavlov showed that dogs could be conditioned to salivate at the sound of a bell if that sound was repeatedly presented at the same time that they were given food.

Pavlov’s studies of classical conditioning have become famous since his early work between 1890 and 1930. Classical conditioning is “classical” in that it is the first systematic study of the basic laws of learning (also known as conditioning).

Pavlov’s dogs were individually situated in secluded environments, secured within harnesses. A food bowl was positioned before them, and a device was employed to gauge the frequency of their salivary gland secretions.

The data from these measurements were systematically recorded onto a rotating drum, allowing Pavlov to meticulously monitor the rates of salivation throughout the course of the experiments.

First, the dogs were presented with the food, and they salivated. The food was the unconditioned stimulus and salivation was an unconditioned (innate) response. (i.e., a stimulus-response connection that required no learning).

Unconditioned Stimulus (Food) > Unconditioned Response (Salivate)

In his experiment, Pavlov used a metronome as his neutral stimulus. By itself, the metronome did not elicit a response from the dogs. 

Neutral Stimulus (Metronome) > No Response

Next, Pavlov began the conditioning procedure, whereby the clicking metronome was introduced just before he gave food to his dogs. After a number of repeats (trials) of this procedure, he presented the metronome on its own.

As you might expect, the sound of the clicking metronome on its own now caused an increase in salivation.

Conditioned Stimulus (Metronome) > Conditioned Response (Salivate)

So, the dog had learned an association between the metronome and the food, and a new behavior had been learned.

Because this response was learned (or conditioned), it is called a conditioned response (and also known as a Pavlovian response). The neutral stimulus has become a conditioned stimulus.

Pavlovs Dogs Experiment

Temporal contiguity

Pavlov found that for associations to be made, the two stimuli had to be presented close together in time (such as a bell).

He called this the law of temporal contiguity. If the time between the conditioned stimulus (bell) and the unconditioned stimulus (food) is too great, then learning will not occur.

‘Unconditioning’ through experimental extinction

In extinction, the conditioned stimulus (the bell) is repeatedly presented without the unconditioned stimulus (the food).

Over time, the dog stops associating the sound of the bell with the food, and the conditioned response (salivation) weakens and eventually disappears.

In other words, the conditioned response is “unconditioned” or “extinguished.”

Spontaneous recovery

Pavlov noted the occurrence of “spontaneous recovery,” where the conditioned response can briefly reappear when the conditioned stimulus is presented after a rest period, even though the response has been extinguished.

This discovery added to the understanding of conditioning and extinction, indicating that these learned associations, while they can fade, are not completely forgotten.

Generalization

The principle of generalization suggests that after a subject has been conditioned to respond in a certain way to a specific stimulus, the subject will also respond in a similar manner to stimuli that are similar to the original one.

In Pavlov’s famous experiments with dogs, he found that after conditioning dogs to salivate at the sound of a bell (which was paired with food), the dogs would also salivate in response to similar sounds, like a buzzer.

This demonstrated the principle of generalization in classical conditioning.

However, the response tends to be more pronounced when the new stimulus closely resembles the original one used in conditioning.

This relationship between the similarity of the stimulus and the strength of the response is known as the generalization gradient.

This principle has been exemplified in research, including a study conducted by Meulders and colleagues in 2013.

Impact of Pavlov’s Research

Ivan Pavlov’s key contribution to psychology was the discovery of classical conditioning, demonstrating how learned associations between stimuli can influence behavior.

His work laid the foundation for behaviorism, influenced therapeutic techniques, and informed our understanding of learning and memory processes.

Behaviorism: Pavlov’s work laid the foundation for behaviorism , a major school of thought in psychology. The principles of classical conditioning have been used to explain a wide range of behaviors, from phobias to food aversions.

Therapy Techniques: Techniques based on classical conditioning, such as systematic desensitization and exposure therapy , have been developed to treat a variety of psychological disorders, including phobias and post-traumatic stress disorder (PTSD).

In these therapies, a conditioned response (such as fear) can be gradually “unlearned” by changing the association between a specific stimulus and its response.

  • Little Albert Experiment : The Little Albert experiment, conducted by John B. Watson in 1920, demonstrated that emotional responses could be classically conditioned in humans. A young child, “Little Albert,” was conditioned to fear a white rat, which generalized to similar objects. 

Educational Strategies: Educational strategies, like repetitive learning and rote memorization, can be seen as applications of the principles of classical conditioning. The repeated association between stimulus and response can help to reinforce learning.

Marketing and Advertising: Principles from Pavlov’s conditioning experiments are often used in advertising to build brand recognition and positive associations.

For instance, a brand may pair its product with appealing stimuli (like enjoyable music or attractive visuals) to create a positive emotional response in consumers, who then associate the product with it.

Critical Evaluation

Pavlovian conditioning is traditionally described as learning an association between a neutral conditioned stimulus (CS) and an unconditioned stimulus (US), such that the CS comes to elicit a conditioned response (CR). This fits many lab studies but misses the adaptive function of conditioning (Domjan, 2005).

From a functional perspective, conditioning likely evolves to help organisms effectively interact with biologically important unconditioned stimuli (US) in their natural environment.

For conditioning to happen naturally, the conditioned stimulus (CS) can’t be arbitrary, but must have a real ecological relationship to the US as a precursor or feature of the US object.

Pavlovian conditioning prepares organisms for important biological events by conditioning compensatory responses that improve the organism’s ability to cope.

The critical behavior change from conditioning may not be conditioned responses (CRs), but rather conditioned modifications of unconditioned responses (URs) to the US that improve the organism’s interactions with it.

Evidence shows conditioning occurs readily with naturalistic CSs, like tastes before illness, infant cues before nursing, prey sights before attack. This conditioning is more robust and resistant to effects like blocking.

Traditional descriptions of Pavlovian conditioning as simply the acquired ability of one stimulus to evoke the original response to another stimulus paired with it are inadequate and misleading (Rescorla, 1988).

New research shows conditioning is actually about learning relationships between events, which allows organisms to build mental representations of their environment.

Just pairing stimuli together doesn’t necessarily cause conditioning. It depends on whether one stimulus gives information about the other.

Conditioning rapidly encodes relations among a broad range of stimuli, not just between a neutral stimulus and one eliciting a response. The learned associations allow complex representations of the world.

Recently, Honey et al. (2020, 2022) presented simulations using an alternative model called HeiDI that accounts for Rescorla’s findings. HeiDI differs by allowing reciprocal CS-US and US-CS associations. It uses consistent learning rules applied to all stimulus pairs.

The simulations suggest HeiDI explains Rescorla’s results via two mechanisms:

  • Changes in US-CS associations during compound conditioning, allowing greater change in some US-CS links
  • Indirect influences of CS-CS associations enabling compounds to recruit associative strength from absent stimuli

HeiDI integrates various conditioning phenomena and retains key Rescorla-Wagner insights about surprise driving learning. However, it moves beyond the limitations of Rescorla-Wagner by providing a framework to address how learning translates into performance.

HeiDI refers to the authors of the model (Honey, Dwyer, Iliescu) as well as highlighting a key feature of the model – the bidirectional or reciprocal associations it proposes between conditioned stimuli and unconditioned stimuli.

H – Honey (the lead author’s surname), ei – Bidirectional (referring to the reciprocal associations), D – Dwyer (the second author’s surname), I – Iliescu (the third author’s surname).

  • Domjan, M. (2005). Pavlovian conditioning: A functional perspective.  Annu. Rev. Psychol. ,  56 , 179-206.
  • Honey, R.C., Dwyer, D.M., & Iliescu, A.F. (2020a). HeiDI: A model for Pavlovian learning and performance with reciprocal associations. Psychological Review, 127, 829-852.
  • Honey, R. C., Dwyer, D. M., & Iliescu, A. F. (2022). Associative change in Pavlovian conditioning: A reappraisal .  Journal of Experimental Psychology: Animal Learning and Cognition .
  • Meulders A, Vandebroek, N. Vervliet, B. and Vlaeyen, J.W.S. (2013). Generalization Gradients in Cued and Contextual Pain-Related Fear: An Experimental Study in Health Participants .  Frontiers in Human Neuroscience ,  7 (345). 1-12.
  • Pavlov, I. P. (1897/1902). The work of the digestive glands. London: Griffin.
  • Pavlov, I. P. (1928). Lectures on conditioned reflexes . (Translated by W.H. Gantt) London: Allen and Unwin.
  • Pavlov, I. P. (1927). Conditioned Reflexes: An Investigation of the Physiological Activity of the Cerebral Cortex . Translated and edited by Anrep, GV (Oxford University Press, London, 1927).
  • Rescorla, R. A. (1988). Pavlovian conditioning: It’s not what you think it is .  American Psychologist ,  43 (3), 151.
  • Pavlov, I. P. (1955). Selected works . Moscow: Foreign Languages Publishing House.
  • Watson, J.B. (1913). Psychology as the behaviorist Views It. Psychological Review, 20 , 158-177.
  • Watson, J. B., & Rayner, R. (1920). Conditioned emotional reactions.  Journal of experimental psychology ,  3 (1), 1.

Further Reading

  • Logan, C. A. (2002). When scientific knowledge becomes scientific discovery: The disappearance of classical conditioning before Pavlov. Journal of the History of the Behavioral Sciences, 38 (4), 393-403.
  • Learning and Behavior PowerPoint

What was the main point of Ivan Pavlov’s experiment with dogs?

The main point of Ivan Pavlov’s experiment with dogs was to study and demonstrate the concept of classical conditioning.

Pavlov showed that dogs could be conditioned to associate a neutral stimulus (such as a bell) with a reflexive response (such as salivation) by repeatedly pairing the two stimuli together.

This experiment highlighted the learning process through the association of stimuli and laid the foundation for understanding how behaviors can be modified through conditioning.

What is Pavlovian response?

The Pavlovian response, also known as a conditioned response, refers to a learned, automatic, and involuntary response elicited by a previously neutral stimulus through classical conditioning. It is a key concept in Pavlov’s experiments, where dogs learned to salivate in response to a bell.

When did Pavlov discover classical conditioning?

Ivan Pavlov discovered classical conditioning during his dog experiments in the late 1890s and early 1900s. His seminal work on classical conditioning, often called Pavlovian conditioning, laid the foundation for our understanding of associative learning and its role in behavior modification.

pavlovs dogs

Biography of Ivan Pavlov, Father of Classical Conditioning

National Library of Medicine / Public Domain

  • Archaeology

Ivan Petrovich Pavlov (September 14, 1849 - February 27, 1936) was a Nobel Prize-winning physiologist best known for his classical conditioning experiments with dogs. In his research, he discovered the conditioned reflex, which shaped the field of behaviorism in psychology.

Fast Facts: Ivan Pavlov

  • Occupation : Physiologist
  • Known For : Research on conditioned reflexes ("Pavlov's Dogs")
  • Born : September 14, 1849, in Ryazan, Russia
  • Died : February 27, 1936, in Leningrad (now St. Petersburg), Russia
  • Parents : Peter Dmitrievich Pavlov and Varvara Ivanovna Uspenskaya
  • Education : M.D., Imperial Medical Academy in St. Petersburg, Russia
  • Key Accomplishments : Nobel Prize for Physiology (1904)
  • Offbeat Fact : A lunar crater on the Moon was named after Pavlov.

Early Years and Education

Pavlov was born on September 14, 1849, in the small village of Ryazan, Russia. His father, Peter Dmitrievich Pavlov, was a priest who hoped that his son would follow in his footsteps and join the church. In Ivan's early years, it seemed that his father's dream would become a reality. Ivan was educated at a church school and a theological seminary. But when he read the works of scientists like Charles Darwin and I. M. Sechenov, Ivan decided to pursue scientific studies instead.

He left the seminary and began studying chemistry and physiology at the University of St. Petersburg. In 1875, he earned an M.D. from the Imperial Medical Academy before going on to study under Rudolf Heidenhain and Carl Ludwig, two renowned physiologists. 

Personal Life and Marriage

Ivan Pavlov married Seraphima Vasilievna Karchevskaya in 1881. Together, they had five children: Wirchik, Vladimir, Victor, Vsevolod, and Vera. In their early years, Pavlov and his wife lived in poverty. During the hard times, they stayed with friends, and at one point, rented a bug-infested attic space.

Pavlov's fortunes changed in 1890 when he took an appointment as the Professor of Pharmacology at the Military Medical Academy. That same year, he became the director of the Department of Physiology at the Institute of Experimental Medicine. With these well-funded academic positions, Pavlov had the opportunity to further pursue the  scientific studies  that interested him.

Research on Digestion

Pavlov's early research focused primarily on the physiology of digestion . He used surgical methods to study various processes of the digestive system. By exposing portions of a dog's intestinal canal during surgery, he was able to gain an understanding of gastric secretions and the role of the body and mind in the digestive process. Pavlov sometimes operated on live animals, which was an acceptable practice back then but would not occur today due to modern ethical standards.

In 1897, Pavlov published his findings in a book called “Lectures on the Work of the Digestive Glands.” His work on the physiology of digestion was also recognized with a Nobel Prize for Physiology in 1904. Some of Pavlov's other honors include an honorary doctorate from Cambridge University, which was awarded in 1912, and the Order of the Legion of Honor, which was given to him in 1915.

Discovery of Conditioned Reflexes

Although Pavlov has many notable accomplishments, he is most well known for defining the concept of conditioned reflexes. 

A conditioned reflex is considered a form of learning that can occur through exposure to stimuli. Pavlov studied this phenomenon in the lab through a series of experiments with dogs. Initially, Pavlov was studying the connection between salivation and feeding. He proved that dogs have an unconditioned response when they are fed — in other words, they are hard-wired to salivate at the prospect of eating.

However, when Pavlov noticed that the mere sight of a person in a lab coat was enough to cause the dogs to salivate, he realized that he had accidentally made an additional scientific discovery. The dogs had learned that a lab coat meant food, and in response, they salivated every time they saw a lab assistant. In other words, the dogs had been conditioned to respond a certain way. From this point on, Pavlov decided to devote himself to the study of conditioning.

Pavlov tested his theories in the lab using a variety of neural stimuli. For example, he used electric shocks, a buzzer that produced specific tones and the ticking of a metronome to make the dogs associate certain noises and stimuli with food. He found that not only could he cause a conditioned response (salivation), he could also break the association if he made these same noises but did not give the dogs food.

Even though he was not a psychologist, Pavlov suspected that his findings could be applied to humans as well. He believed that a conditioned response may be causing certain behaviors in people with psychological problems and that these responses could be unlearned. Other scientists, such as John B. Watson, proved this theory correct when they were able to replicate Pavlov's research with humans. 

Pavlov worked in the lab until his death at the age of 86. He died on February 27, 1936, in Leningrad (now St. Petersburg), Russia after contracting double pneumonia. His death was commemorated with a grand funeral and a monument that was erected in his home country in his honor. His laboratory was also turned into a museum.

Legacy and Impact

Pavlov was a physiologist, but his legacy is primarily recognized in psychology and educational theory. By proving the existence of conditioned and non-conditioned reflexes, Pavlov provided a foundation for the study of behaviorism. Many renowned psychologists, including John B. Watson and  B. F. Skinner , were inspired by his work and built on it to gain a better understanding of behavior and learning.

To this day, nearly every student of psychology studies Pavlov's experiments to gain a better understanding of the scientific method , experimental psychology, conditioning, and behavioral theory. Pavlov's legacy can also be seen in popular culture in books like Aldous Huxley's " Brave New World ", which contained elements of Pavlovian conditioning.

  • Cavendish, Richard. “Death of Ivan Pavlov.” History Today .
  • Gantt, W. Horsley. “ Ivan Petrovich Pavlov. ” Encyclopædia Britannica, Encyclopædia Britannica, Inc., 20 Feb. 2018.
  • McLeod, Saul. “Pavlov's Dogs.” Simply Psychology, 2013 .
  • Tallis, Raymond. “The Life of Ivan Pavlov.” The Wall Street Journal, 14 Nov. 2014 .
  • “Ivan Pavlov - Biographical.” Nobelprize.org .
  • “Ivan Pavlov.” PBS, Public Broadcasting Service .
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